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स्नेह मन में पालती, महके वो जैसे मालती स्नेह मन में पालती, महके वो जैसे मालती
कभी हँसे तो कभी रो पड़े असह्यय पीड़ा सहती कभी हँसे तो कभी रो पड़े असह्यय पीड़ा सहती
एक टक देखे जाये और हृदय की विरह वेदना किससे कहे सुनाये एक टक देखे जाये और हृदय की विरह वेदना किससे कहे सुनाये
थे वृक्ष कई, और उनके ऊपर गिल्लू की धमाचौकड़ी दिनभर। थे वृक्ष कई, और उनके ऊपर गिल्लू की धमाचौकड़ी दिनभर।
अपने जीवन का अक्षर बन खुद मुझको वाक्य बनाने दो अपने जीवन का अक्षर बन खुद मुझको वाक्य बनाने दो