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मेरा भाग्य

मेरा भाग्य

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एक दिन मम्मी से फोन पर बातों-बातों में मैंने पूछा- मम्मी वो विजय अंकल कैसे हैं जिनकी शादी में हम लोग कई वर्ष पहले गये थे? बहुत दिनों से सोच रही थी, अब जब भी आपसे बात करूंगी तब जरूर पूछूंगी, कैसी चल रही है उनकी जिन्दगी, उनकी पत्नी बहुत सुंदर है। देखते ही वो मन को लुभा गई कितनी आकर्षक है।

मम्मी ने कहा- अरे अच्छा याद दिलाया मैं तुम्हें बताना भूल गई। उनकी शादी के कुछ दिन बाद मैं बैंक गई तो पूछा मैनेजर विजय जी नहीं दिख रहे तो पता चला उनका ट्रांसफर हो गया है भोपाल। फिर बात आई गई हो गई। एक दिन शाम को अचानक विजय बख्शी आये। हम लोग आश्चर्यचकित हो गये। अरे! वाह इतने वर्षों बाद, वो बोले- हाँ शादी के थोड़े दिन बाद मेरा ट्रांसफर हो गया था और अब 5 साल बाद फिर से यही हो गया है।

हम लोगों ने कहा- यह तो बहुत अच्छा हुआ। बैंक भी सूना-सूना सा लगता था।

पापा ने  कहा- और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी ज़िंदगी? तुम तो बिना बताये ही चले गए शादी के बाद बहू के साथ घर बुलाने का मौका ही नहीं दिया। बहू कैसी है, बच्चे वगैरह है क्या?

विजय ने हमें  बताया– सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा है। दो बच्चे हैं हमारे। बहुत प्यारे हैं। लेकिन मैं आप लोगों को इसके पीछे की कहानी बताना चाहता हूँ। अब आप लोगों  से क्या छिपायें। ये बात हमने किसी से नहीं कही और न ही कभी कहेंगे, पता नहीं क्यों आप लोगों से कहने को दिल कर रहा है।

हमने कहा- क्यों क्या हुआ? प्रीति अच्छी तो है। हाँ भाभी जी, बहुत अच्छी है प्रीति। घर को परिवार को अच्छी तरह देख रही है।

तो फिर क्या हुआ?

विजय बोले- शादी की रात को जब हम प्रीति से मिले तब प्रीति ने कहा - मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।

मैंने  कहा- क्या?

वो बोली- शायद जो मैं कहना चाह रही हूँ उसे सुनकर आप मुझे और मेरे परिवार को माफ नहीं करोगे।

मैंने  कहा- ऐसी क्या बात है प्रीति?

प्रीति ने बताया- मेरी शादी की बात मेरी मम्मी की एक सहेली ने की थी। एक दिन अचानक मेरे घर आंटी आपको और आपके परिवार को मेरे घर लेकर आई। और आपको मुझसे मिलवाया। उस दिन मुझे लगा मैं आपको सच बता दूँ। लेकिन आंटी को इस बारे में कुछ नहीं मालूम था इस डर से नहीं कहा और आप मुझसे मिलकर बहुत खुश लग रहे थे। लगा आपको धक्का लगेगा। और आपको पाने की खुशी में मैं भी मन ही मन खुश थी। और मुझे लगा मेरी किस्मत आपके रुप में चल कर आई है। यह सोचकर खामोश रह गई। लेकिन बाद में सोचा यह गलत है आपके साथ अन्याय है और सोचा शादी की रात को आपसे कहूँगी फिर आपका जो फैसला होगा मुझे मंजूर होगा।

मैं यह कहना चाह रही हूँ मैं आपको संतान का सुख नहीं दे सकती क्योंकि मैं...।

क्यों प्रीति बोलो ...?

क्योंकि मैं किन्नर हूँ ।

विजय ने कहा- क्या कह रही हो।

प्रीति- हाँ विजय जी यह सच है।

प्रीति यह क्या कह दिया। मुझे ऐसा लग रहा है धरती फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं। लेकिन तुम्हें मैं बहुत चाहने लगा हूँ। तुम्हें देखकर कोई नहीं कहेगा की तुम किन्नर हो! तुममें तो पूरे स्त्री के गुण है। रुप-रंग से तुम बहुत सुन्दर हो। कहीं से भी किसी को कोई शक नहीं होगा।

प्रीति ने कहा- जी विजय जी, जब मैं छोटी थी तब से लेकर आज तक मेरे माता-पिता ने मुझे किन्नर जाति के लोगों से बचाकर रखा। किसी को भी यह जाहिर नहीं  होने दिया कि हमारी बेटी किन्नर है। मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ। मैं बहुत ही मन्नतों के बाद पैदा हुई। उन्होंने मुझे बहुत प्यार और दुलार से पाला है।

मेरी माँ-पिता का सोचना था शादी तो करनी नहीं है ये मेरी बेटी-बेटा दोनों ही है। लेकिन वो आंटी ने सोचा इनकी बेटी बड़ी हो गई है। मैं अचानक कोई रिश्ता लेकर जाऊंगी तो मेरी दोस्त बहुत खुश हो जायेगी। लेकिन मेरी माँ  खुश नहीं दुखी हो गई थी। उन्होंने उस समय आप लोगों का स्वागत किया कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया। सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया। माँ ने यह बात इसलिये किसी को नहीं बताई कि अगर किन्नर जाति के लोगों को पता चलती तो वो लोग मुझे ले जाते। मैं आपको धोखे में नहीं रखना चाहती इस कारण मैने सच बता दिया। आप विजय जी परेशान न हो मैं बिना कुछ कहे यहाँ से चली जाऊंगी सारा इल्जाम अपने ऊपर ले लूंगी कि मेरी जबरदस्ती शादी की गई है। मैं किसी और से करना चाहती थी।

विजय बोले- प्रीति इतने दिनों से तुमसे बात करते-करते मुझे तुमसे प्रीति हो गई है और मैं तुम्हें बदनाम नहीं करना चाहता हूँ। मैं तुम्हें अपना नाम देने के लिए यहाँ लाया हूँ। प्रीति मेरा एक गलत कदम दोनों घरों की बदनामी करा देगा।

मैं आज अभी यह कसम खाता हूँ कि मैं इस स्थिति मैं भी तुम्हारे साथ जीवन यापन करूंगा और किसी को भी कुछ पता नहीं चलने दूंगा।

प्रीति ने कहा- विजय जी आप महान है और कदमों पर गिर गई। मैंने सोचा भी नहीं था। मेरी किस्मत में आप जैसे इंसान का साथ होगा। मैने पति के सुख की तथा परिवार की कभी कल्पना भी नहीं की थी। मैं धन्य हो गई आपका साथ पाकर।

भाभी जी कुछ समय बाद हम भोपाल चले गये वहाँ  हमने दो- दो साल के अंतर से एक लड़का और एक लड़की गोद ले लिये। आज लड़की 4 साल की है और लड़का 2 साल का हैं। प्रीति ने माँ का फर्ज बखूबी निभाया व उसके माँ बनने का सपना भी पूरा हो गया। हम लोग सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मम्मी ने बताया की फिर हम दोनों ने विजय जी को सेल्यूट किया और आशीर्वाद दिया। तुम धन्य हो महान हो। ऐसा कोई नहीं करता जो तुमने किया है।

उन्होंने कहा- शायद मेरी किस्मत में प्रीति ही लिखी थी इसलिये तो हमारी शादी हुई। शादी के बाद मैं उसे छोड़ दूँ ये कहा का न्याय है। उसने क्या बिगाड़ा है सृष्टि ने जो रचना उसकी की है उसी में वह मुझे स्वीकार्य है।

मैंने उसे पत्नी का दर्जा दिया और बच्चों को गोद लेकर उसे माँ का भी दर्जा दे दिया। हम सब खुश है। जो मेरे भाग्य में लिखा था वह मुझे मिला इसमें दोष किसी का नहीं है।

 

 

  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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