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Anand Kumar

Children Stories Inspirational

4.4  

Anand Kumar

Children Stories Inspirational

गणित और प्राचार्य

गणित और प्राचार्य

3 mins
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गणित वो विषय है जिससे मैं हमेशा भागता रहा पर विडंबना ऐसी की पूरे अध्ययन काल मे गणित ने मेरा साथ नहीं छोड़ा और कमोबेश सबसे अच्छे अंक इसी विषय मे प्राप्त होते रहे।

  बात तब की है जब मुझे अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल की 5वीं कक्षा से सीधे विशुद्ध हिंदी माध्यम विद्यालय विद्या_मंदिर के 7 वीं कक्षा में प्रवेश मिला। मात्र अंकगणित के दर्शन किया हुआ एक विद्यार्थी का पाला बीजगणित और क्षेत्रमिति से हुआ🙄..

   पहले तो कुछ भी समझ नहीं आया...चुपचाप क्लास के सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ कर गणित का आनंद लेता रहा। पीछे वाले बेंच का सबसे बड़ा लाभ ये होता है कि आपको हर्षोल्लास का वातावरण मिलता रहेगा और आप हीनभावना के शिकार तो कदापि नहीं होंगे और तो और प्रायः यहाँ बैठने की जगह हमेशा उपलब्ध होती है। 

    गणित का क्लास स्वयं प्रधानाचार्य लेते थे जिसे प्यार से हम सब कनमुछुया (कान में बाल) बुलाया करते थे और उनका खौफ ऐसा की कोई छात्र पूरी घंटी चु तक नहीं करता था। पर मेरी बात थोड़ी अलग थी क्योंकि मैं उन्हें प्रतिदिन स्वयंसेवक संघ की शाखा में खाकी निक्कर में देखा करता था।लगता था मानो हम तो मित्र हैं डरना कैसा पर क्लास की मर्यादा बनाये रखने के लिए मैंने भी कभी भूल से कोई प्रश्न नहीं किया। पर विषय भी तो समझना था। मैंने अंततः पूरी वस्तुस्थिति से पिताजी को अवगत कराया। पिताजी ठहरे मैथ-आनर्स...10-15 दिनों में पिताजी ने लगभग गणित विषय का आधा पाठ्यक्रम खत्म करवा दिया। जल्द ही छमाही परीक्षा आ गई। मेरी विषय की समझ बढ़ चुकी थी और मैं पूर्णरूपेण परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए मानसिक रूप से तैयार था। 

   परीक्षा सम्पन्न हुई और परिणाम पूर्व प्राचार्य महोदय द्वारा सभी की उत्तरपुस्तिका कक्षा में दिखलाई जा रही थी। 100 में 78 मार्क्स अधिकतम था और मुझे 65 अंक प्राप्त हुए थे। अंक तो संतोषजनक ही थे पर जब ध्यान से उत्तरपुस्तिका का अवलोकन किया तो पाया कि कुल अंकों के योग में 10 अंक कम मिले थे। दो चार बार योग कर संतुष्ट होने के उपरांत मैंने प्राचार्य महोदय को इससे अवगत कराया। उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर स्वयं पीछे आ गए...कड़क आवाज में पूछा कहाँ गलती है। मैंने धीमे स्वर में कहा बस कुल योग में। अंततः भूल सुधार हुई और मुझे 75 अंक प्राप्त हुआ। तदुपरांत प्राचार्य महोदय ने पूछा तुम तो शाखा(RSS) जाते हो न... मैंने सहमति में सर हिलाया। फिर व्यंग्यात्मक लहजे में अच्छा फिर भी पढ़ लेते हो। मैंने एक मौन मुस्कुराहट में पुनः सहमति व्यक्त की।तभी झट उन्होंने आदेश दिया कि तुम आज से आगे की बेंच पर पढ़ने वाले छात्रों के बीच बैठोगे. मन तो मेरा जरा भी नही था पर आदेश तो मानना ही था और इधर गणित में अच्छे अंक आने से क्लास के अग्रिम पंक्ति में बैठे होनहार विद्यार्थियों को अपना सिंहासन डोलता दिख रहा था।


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