आज़ादी का पर्दा
आज़ादी का पर्दा
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तुम तो उड़ ही रहे थे
कब कोई सरहदे तूने माना
जितना भी प्यार से भरना चाहे
सब पिंजरे को किया तू बेगाना
' फिरसे उड़ चला ' फिर कहाँ क्यों ?
जब आज़ादी में डूबा चुके है रूह !
अगर मिला कोई हसीं पिंजरा
उसमे ऐसे ही बस गए तुम -
तुम फिर नहीं हो आज़ाद बंजारा ;
आज़ादी नहीं अय्यासी में बीके हो तुम