कलियाँ...
कलियाँ...
जब दस्तक दी जवानी ने,
कितनी खिल उठी कलियाँ...
कुछ मुरझा गयीं कलियाँ...
कुछ को हल्दी में डूबना पडा,
कुछ किताबों में डूब गयीं...
हल्दी में डूबी कलियों ने
संसार के सारे सुख-दुःख अपनाये,
तौर तरीके सिखे...
इतना सब होने पर भी
कुछ हल्दी में डूबी कलियाँ जी ना सकी
मुरझा गयी,ससुराल के लोगों ने
कली का खिलना मुनासिब ना समझा...
कुछ कलियाँ फूल बनके खिल उठी...
उन फूलों के पेड़ पर नयी-नयी कलियाँ
आना शुरू हो गई ..
पेड़ बहुत फला-फूला...
किताबों में डूबी कलियाँ
दिन-रात पढ़ाई करती रहीं...
उनमेंसे कुछ को बीच में पढ़ाई छोड के
जबरन हल्दी में डूबना पडा...
कुछ पढ़ाई पूरी करके
मोटे पगार की
नौकरीं करने लगीं...
फिर उसके बाद बड़े पद पर
अधिकारी बनीं...
फिर हल्दी में डूब गयीं...
और फूल बनकर खुशबू से महक उठीं...