चाँद गुम है
चाँद गुम है
आज शाम ही तो मिला था उससे मैं
देखा था उसे अपने पीछे भागते हुए
लेकिन ये क्या रात हुई है अभी-अभी
और वो मुझे दिखा ही नहीं आसमान में कहीं
मैंने उसे ढूँढने की बहुत कोशिश की
लेकिन आज शायद चाँद गुम है
मैंने बादलों से भी पूछा
तुमने छुपा तो नहीं लिया उसे
वो खफा हो मुझपे ही गरजने लगे
बोले हमने भी नहीं देखा उसे शाम से
हम तो यहीं घूम रहे हैं कब से
लेकिन आज शायद चाँद गुम है
मैंने पूछा फिर टिमटिमाते हुए इन तारों से
कहीं तुम्हारी तो लड़ाई नहीं हुई उस बेचारे से
रोजाना तुम्हे प्यार से चिढ़ाता था ना वो
अकेले ही रात को रोशन कर थोड़ा इठलाता था ना वो
लेकिन तारे भी परेशान थे उस के खोने से
यूँ बिन बताये कहीं चले जाने से
बोले जैसा भी था हमें प्यारा था
हम इतने सारे और वो एक चाँद हमारा था
हम कहाँ ढूंढे उसे अब इस काली रात में
किस के पास जाएँ लेके अपनी फरियाद ये
किसे बताएं अब हम अपनी ये परेशानी
लेकिन आज शायद चाँद गुम है
उनकी बातें सुन थोड़ा दुखी हुआ मैं भी
मुझे बिना बताये ही चला गया वो कहीं
मैं जरुर पूछुंगा उस से वापस आने पर
कि गये कहाँ थे तुम इस तरह सबसे छुपकर
लेकिन अभी तो सबको यही मालूम है बस
कि यक़ीनन आज चाँद गुम है