"मिजाज बदला है"
"मिजाज बदला है"
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आज फिर मौसम ने अपना मिजाज़ बदला है,
बादलों ने अपने बरसने का रिवाज़ बदला है।
सूखा शज़र फिर एक बार हरा भरा हो गया,
लगता है कुदरत ने कोई कारसाज़ बदला है।
आख़िर लौट आना था उसे अपने घरौंदे में,
परिन्दे ने आज फिर अपनी परवाज़ बदला है।
उदास सुर भी नगमें प्यार के गुनगुनाने लगे,
सरगम ने जिस वक्त से अपना साज़ बदला है।
घर गरीब के आजकल सब आने जाने लगे,
ख़ुदा ने जब से उसका कामकाज बदला है।
ग़म भी शर्माने लगा आने से रू-ब-रू मेरे "सहर"
जिस दिन से मैंने मुस्कुराने का अंदाज़ बदला है।
सर्वाधिकार सुरक्षित मोहम्मद शरीफ "सहर"