माताजी
माताजी
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चली गयीं तुम हमे छोड़,न जाती माताजी
हमको अब भी याद तुम्हारी आती माताजी।
झुकी कमर आँखों पर चश्मा ,मुँह में दाँत नहीं
अपनी धुन में भजन-कीर्तन गाती मातजी।
रही स्वयं बीमार ,दवा की बात कभी न की,
थका जान कर ,सिर मेरा सहलाती माताजी।
दृष्टि से ओझल होकर भी मुझसे दूर नही
सपनों में आकर अक्सर बतियाती माताजी।
हम कर्तव्य आपके प्रति माँ न निर्वाह सके
सोच-सोच कर अब आँखें भर आती माताजी।