Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Swapnil Jha

Others

1.6  

Swapnil Jha

Others

स्वार्थ

स्वार्थ

1 min
6.9K


आसमाँ ऊपर पड़ा, पाताल नीचे है

देवेश ने वृष्टि से सारे भूमि सींचे हैं

हम उसे हर रोज़ झुककर कर रहे नमन

देख दुनिया की गति हम आँख मींचे हैं |

 

सोच ऐसी बन गई सब कुछ ये अर्थ है

काम कुछ भी हो भले , पर स्वार्थ – स्वार्थ है

छोड़ो ज़रा अहम् को भी , फेंको इसे परे

चेतो जरा ऐ मानवों , ये तो अनर्थ है |

 

होकर भला इंसान भी अपने को ठगते हो

अपने ही परिजन हेतु तुम ख़ुद जाल बुनते हो

अच्छाई इसमें कुछ नहीं यूँ फँस के रोओगे

छोड़ो इसे अब भी सही , क्यों स्वार्थ चुनते हो ?

 

भगवान भी अब रो पड़े , धरती भी रोई है

देवी भी तुमसे रूठकर , अब दूर सोई है

सोच कर निज स्वार्थ तुम करते रहे गलती

देते रहे गाली की अपनी भाग्य सोई है |

 

 

- स्वप्निल कुमार झा


Rate this content
Log in