मेरे गाँव में .............
मेरे गाँव में .............
मेरे गाँव में .............
उडती है तितलियाँ पानी के धारे..
खिलते है फूल गली के किनारे
उमड़ते है बादल गरजती है बिजली
वो बारिस हुए है नदी के किनारे
कोयल चहकती है मैना पुकारे
वो बोले मुसाफिर घर को तो आरे
शहर तो नहीं है मेरा गाँव है ये
जहाँ सब समझते है सबके इशारे
तेर शहर में .............
लौटा शहर तो नया सा है मौसम
नयी सी लगी है शहर की ये रौनक
सब कुछ तो देखा पर इन्सांन जाने
कहाँ खो गए भीड़ में आते-जाते
वो बादल भी खोया वो मौसम भी छूटा
वो तितली वो झरने सभी खो गए
तेज़ चलते सफ़र में ..............
में आगे ही आगे निकल आया बढता हुआ
भीड़ में हूँ अकेला घिरा अजनबी सी हवा
जो बही जा रही है ...
लेके मुझे भी.... कहीं जा रही है __