यूँ ही हर्फ़ बनके फिरा करूँ
यूँ ही हर्फ़ बनके फिरा करूँ
1 min
40.8K
यूँ ही हर्फ़ बनके फिरा करूँ
यूँ ही हर्फ़ बनके मिला करूँ
जो गुजर रही उस धूल में
तुझे कैसे अपनी सदा कहूँ
वो समझता मुझको रकीब है
में समझता उसको रकीब हूँ
ये तो है निगाह का मामला
मैं यहाँ रहूँ या वहाँ रहूँ
जो समझना चाहे मुझे समझ
हर रंग को तैयार हूँ
जो लगूं सुबह तो हूँ मखमली
जो बयार हूँ तो बयार हूँ
वो जो बोलते हैं खलूस से
मुझसे रहता है वो जुदा-जुदा
जो रहा नहीं था कभी अलग
उसे कैसे खुद से जुदा कहूँ
