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Kaushal Upreti

Others

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Kaushal Upreti

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भेडिये आयें है शहर में..

भेडिये आयें है शहर में..

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भेडिये आयें है शहर में..

कुछ निरीह चंचल कुछ खूंखार

भेडिये..

जो बनें है कलुषित –भावों से

अंतर-ग्लानी से

निश्चेतना , निराकार

फिर भी जब होती है चांदनी

असली रूप धरतें है

लम्बी-लम्बी अट्टहास भरता है

भेडिये आयें है शहर में

सावधान !!

जो अपने लम्बे नाखुनो से

मानवता को नोचेंगे

भयावह चेहरे धर

फिर कुछ संधान करेंगे

भेडिये आये हैं

सावधान !!


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