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Umakant Kale

Others

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Umakant Kale

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ईद मुबारक

ईद मुबारक

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रमजानचा प्रवित्र मास

रोजाचा नित्य उपवास

पाच वेळाची नमाजचा

उज्ज्वल होतो मनाची आस

मुस्लिमाचा फक्त हा नाही त्योहार

आनंद देण्याचा तो होय बाजार

ना वाटू  जातीपाती मधे

कठोर शब्दाचा नको आता प्रहार

क्या मस्जिद क्या दरगाह

क्या मंदिर क्या गुरुद्वारा

कर नेकी तू  बंदे, वही पायेगा

जिसे मानता है तू  वजूतदारा

ना अलल्हा मे, ना राम मे

ना नानक मै, ना कर फरक येशु मे

जसि होती तुझी दृष्टी

परमेश्वर वही था, हर एक रुप मे

ना अलल्हा ने कहा कभी

ना राम ने कभी था बोला

नको हा मग भेद आता

आली ईद दो प्यार के लब्ज बोला

फेक नफरत की तू  दोर को

आ लग जा गले

ईद मुबारक हो माझ्या सख्या

आता हो एक प्रेमामधे

 

 


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