ले चलना है तुम्हें गांव अपने
ले चलना है तुम्हें गांव अपने
ले चलना है तुम्हें गांव अपने
सर्दी के दिनों में
क्योंकि ये भी अब शहर में
तब्दील हो रहा है
व्यापारियों ने यहां भी फैला दिया है
बाजार से उपजा असंतोष
और बाज़ारीकरण
सम्बन्धों में भी
घुल गया है ये जहर मीठा
इसके पहले की ये भी बदल जाए
बाजार की ज़िंदा कब्र में
आओ दिखाऊं तुम्हें गांव अपना
यहां आज भी सर्द की धुंध में खुशबू है
सरसों शैशव हैं और ईख जवान हो चुकी है
बोरे में धान कसे जा चुके हैं
बखार से निकाल
नहरों का पानी बचा है
पर बच्चों ने नहाना छोड़ दिया है
सूरज की किरणों से ही नहाते रहते हैं
और गंध गेंदे की पसरी है
घर के मेरे आस पास
बगल की चाची जो शौक से गेंदे गुलाब
लगाती थीं दुआर पर अपने
उसके जवान और निकम्मे बेटे ने
उसे बेचना शुरू कर दिया है
अनुष्ठानों के बढ़ते जाल में
रात पुआल जो जलते थे
वो बचा है पूरे शीत के लिये
घर की कौड़ी में पक रहा है शकरकन्द
और ऊपर बैठा चाँद ताक रहा है
सब कुछ, मैं भी ताकती हूँ उसे
जैसे उदास नीरव एकांकी कटाक्ष विरही
नज़रों से देख के उसके संग चांदनी उसकी
बढ़ चला वो उस ओर
जहाँ रहते हो तुम इन सबसे दूर
हीटर जैकेट की कृत्रिम ऊष्मा लिये
ले आएगा तुम्हें यहां
मेरी आह से तुम्हें विवश कर
उतार देगा खुद की मुक्ति के लिये
तुम्हें यहां बड़े जतन से
कहता है वो चाँद चाँद नहीं रह जाएगा
चाँदनी दूर छिटक जाएगी
धरती सर्द होना भूल जाएगी
पृथ्वी गर्म हो रही है
और भी होती जाएगी
अगर तुम साथ न हुए मेरे।