किसी आदमी की आँखों से काजल भी चुरा लाये और उसे पता भी न चले। किसी आदमी की आँखों से काजल भी चुरा लाये और उसे पता भी न चले।
लेखक: विक्टर द्रागून्स्की अनुवाद: आ. चारुमति रामदास लेखक: विक्टर द्रागून्स्की अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
वह सोच रही थी कि मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसा कभी नहीं सोचा था। वह सोच रही थी कि मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसा कभी नहीं सोचा था।