इस बार ये बूंदें गिरी थी एक नहीं लाखों कृषकों की आंखों से। इस बार ये बूंदें गिरी थी एक नहीं लाखों कृषकों की आंखों से।
घर पे कभी कभी खाने को एक अन्न भी न रहता था। तब हमारे घर के लोग दो-दो, तीन-तीन दिन तक भूखे ही रहकर स... घर पे कभी कभी खाने को एक अन्न भी न रहता था। तब हमारे घर के लोग दो-दो, तीन-तीन द...