यादें
यादें
मेरी बेटी से जुड़ी यादों में एक ये भी है।जब मैंने पहली बार अपनी बेटी को वैक्सीन लगवाया।मेरी बिटिया होने के बाद लाकडाउन लग गया जिससे उसे उस समय वैक्सीन नहीं लग पाई थी।तो लाकडाउन खुलने के बाद लगवाए गए।
जब पहली बार वैक्सीन लगवाना था तो मैं बहुत डर रही थी ।मैं जाने के लिए तैयार नहीं थीं। मैं एक ही बात बार बार बोल रही थी कि मैं अपनी बेटी को टीका नहीं लगाउंगी ।दर्द होगा मेरी बेटी को,आशा जो कि रिश्ते में मेरी जिठानी लगती हैं उन्होंने मुझे बहुत समझाया तब जाकर मैं वैक्सीन लगाने के लिए तैयार हुई ।
वहां जाने के बाद सब बच्चों का रोना देखकर मैं भी रो पड़ी ,और अपनी बेटी को सीने से लगाकर वहां से बाहर खड़ी हो गई ।बाहर खड़ी होकर मैं बहुत हो रही थी, डॉक्टर दीदी ने जब मुझे देखा तो वो समझ गइं कि मैं क्यों हो रही हूं ।वो मेरे हाथ से बेटी को लेकर अन्दर चली गई और टीका लगाकर वापस ले आई।मैंने देखा मेरी बेटी एकदम नहीं रो रही थी , टीका लगाने पर भी नहीं रोई ।फिर भी मैं मां हूं मुझे डर लगता था ।घर से वापस आई तो सब लोग मुझे चिढ़ाने लगे । तुम तो कह रही थी टीका नहीं लगाऊंगी और लगवा लाई ।
कल मेरी बेटी को दूसरा टीका लगना है ,मुझे अभी भी बहुत डर लग रहा है ।मैं कैसे टीका लगवाऊंगी , कोई और डॉक्टरों होंगी तो ? मेरी बेटी को तेज से टीका न लगा दे ?
बार-बार मन में यही आ रहा है !
