Dr Priyanka mishra

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उम्मीद

उम्मीद

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आज सुबह जब मैं उठा तो न्यूज़ पेपर में देखा कि विश्वविद्यालय के कार्यकारणी की मीटिंग होने वाली हैं। ये समाचार देखकर मन खुश हो गया, और मैने अपने सर को फोन लगाया। सर को जब ये समाचार सुनाया तो वो बहुत खुश हुए और बोला कि आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। चलो देखा जाए कुछ जरूर नया समाचार मिलेगा। हम सभी के उम्मीदों को बल मिलेगा।

मैंने दो मास पूर्व ही विश्विद्यालय में प्रवासी अध्ययन केन्द्र के सहायक प्रोफेसर की पोस्ट के लिए आवेदन किया था। मैं इस विश्वविद्यालय से पहला विद्यार्थी था, जिसने प्रवासियों पर काम किया था। मुझे उम्मीद थी कि मेरा चयन हो जाना चाहिए। क्योंकि साक्षात्कार में मेरे अतिरिक्त दस उम्मीदवार और थे। लेकिन ये लोग एकेडेमिक मेरिट में मुझसे ज्यादा कम थे, साथ ही प्रवासी भारतीय पर कुछ लेख लिखकर उम्मीदवारों की सूची में शामिल हुए थे। मेरे अतिरिक्त मुझे जानने वालों को उम्मीद थी कि इस पोस्ट के लिए हमारा चयन हो जायेगा।

साक्षात्कार के समय बाहर से तीन विषय विशेषज्ञ आये हुए थे, जो मेरे काम से परिचित भी थे। एक विषय विशेषज्ञ मेरे साथ मॉरीशस और फिजी जैसे देशों की यात्रा कर चुके थे। साक्षात्कार के दौरान मुझसे जो भी सवाल पूछे गए,मैंने सभी प्रश्नों का उत्तर दिया। कुलपति ने खड़े होकर मेरी बड़ाई की और कहा कि इनके काम से पूरे विश्विद्यालय को गर्व हैं। साक्षात्कार कक्ष से निकलने के बाद मैं अति आत्मविश्वास से बाहर आया।

शाम को कार्यकारणी की मीटिंग खत्म हो गयी थी। सूत्रों से पता चला कि चयनित उम्मीदवारों को मेल के माध्यम से सूचित किया जा रहा है। रात इंतजार करते करते बीत गई। पूरी रात मैं नियुक्ति के बाद के ख्वाबों को देखते रह गया। योजना बनाते रह गया कि भविष्य में मुझे इस क्षेत्र में कितने कार्य करने हैं। रात बीत गयी लेकिन आँखों पर नींद नही आयी। सुबह उठकर पूजा पाठ किया और लैपटॉप में मेल खोलकर बैठ गया , और समय समय पर रिफ्रेश करता रहा। साथ ही सोशल साइट पर दूसरे विषय के अन्य चयनित उम्मीदवारों को लोगों के बधाई संदेश को पढ़ता रहा। शाम होने लगी इसके साथ ही मेरा मन किसी अघटित घटना से संशकित होने लगा। मैंने विश्विद्यालय में फ़ोन लगाया तो पता चला कि मेल भेजा जा रहा हैं। फिर उम्मीद के साथ लैपटॉप के सामने बैठा रहा। बीच बीच मे शुभचिंतकों के फ़ोन आते रहे कि- बधाई कब से लोगे ? शाम के सात बजे गए तो मेरे सर ने बोला कि ऑफ़िस जाकर देखो की मेल आया क्यो नही ? शायद ग़लती से मेल दूसरे मेल पर चला गया हो। 

मैं भागते हुए ऑफ़िस पहुँचा, तो ऑफिस बन्द हो रहा था। मैं ऑफ़िस गया और जाकर पूछा कि चयनित उम्मीदवारों को मेल चला गया क्या? ऑफ़िस के स्टाफ ने बोला कि मेल तो सबको दोपहर में ही चला गया। मैने अपने विषय के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वो तो कल शाम को ही भेज दिया गया। मैंने कहा कि मुझे तो मिला ही नही हैं। उन्होंने कहा कि -सर आपका नाम चयनित सूची में नही है। वो तो दिल्ली के प्रोफेसर के भतीजे का हुआ है। जो किसी कॉलेज में पिछले दस सालों से पढ़ा रहा था। मैं सन्न हो गया और वही बैठ कर रह गया। मेरे आगे अंधेरा छा गया। मेरी चेतना संज्ञाशून्य हो गयी थी। थोड़ी देर बाद अपने को संयमित किया और सर को फ़ोन किया कि मेरा चयन नहीं हुआ है। वो भी शान्त हो गए। घर आते समय मेरा शरीर काम ही नहीं कर रहा था। घर आकर भगवान के मन्दिर के पास जाकर बैठ गया और रोने लगा। रोते रोते ही मैंने पूछा कि क्या मेरा चयन इसलिए नहीं हुआ कि कोई मेरा इस क्षेत्र में गॉडफादर नहीं है ? क्या मैं कमजोर विद्यार्थी हूँ ? मेरा भाग्य इतना कमजोर है ? क्या भगवान हम जैसे असहायों के साथ नहीं होते ?

बहुत सारे सवाल इस उम्मीद ने छोड़ दिया था...


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