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तुम्हे कुछ हो जाता तो………??

तुम्हे कुछ हो जाता तो………??

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हर साल कि भांति चिन्टु इस बार भी बहुत खुश था, क्योंकि

बसन्त पन्चमी आने वाली थी । और इस वसन्त पन्चमी की खास बात

यह थी कि उसे तीन–तीन जगह पु्जा मे शामिल होना था । एक तो

अपने मोहल्ले के लडको के साथ , दुसरा उसके स्कूल मे और तीसरा

जहाँ वह कोचिन्ग करने जाता था ।

सही हैं, तो कुछ का कहना था कि दोपहर 11 बजे के बाद । इसी

बीच पुरा शहर उलझा हुआ था । फिर भी लोग और पन्डित जी अपनी–अपनी सुविधानुसार पुजा के समय को सेट कर लिया कि सुबह के 6 बजे ही पुजा होगा क्योंकि उसके बाद उन्हे दुसरी

जगह भी पुजा करानी थी । चिन्टु और उसके दोस्त भी राज़ी हो गये ,

क्योकि अब तो पन्डित जी जो बोल दे उसे ही मानना है ।

पन्डित जी तो अभी तक तो आये ही नही ! और अब तो सात बजने

वाले हैं । तब पन्डित जी को फोन किया गया तो पता चला कि पहुँचने

वाले ही है ।

घन्टो मे पुजा सकुशल सम्पन्न भी हो गई । पन्डित जी को दक्षिणा

आदि के साथ विदाई दी गयी तथा उसके बाद दोस्तो के साथ जमकर

मस्ती हुई । इतने मे दस बज चुके थे । और 11 बजे ही चिन्टु को

अपने स्कुल और कोचिन्ग दोनो जगह पहुचना था । परन्तु एक ही

समय पर एक इ्ंसान दो जगह कैसे पहुँच सकता हैं ?

तो नही परन्तु उसके साथ उसके कोचिंग मे पढाई करती थी । दोनो

बहुत अच्छे दोस्त थे । पढाई–लिखाई के मामले मे तो टीचर से भी

ज्यादा एक दुसरे को डाटंते थे दोनो । क्योंकि वे दोनो चाहते थे कि इक

दुसरे कि पढाई खराब न हो । और शायद यही कारण था कि वे अभी

तक दोस्त ही थे ।

आना, क्योंकि उस कोचिंग संस्थान में बसन्त पन्चमी बहुत धुम-धाम

से मनायी जाती थी ऐसा लगता था मानो किसी कि शादी कि पार्टी चल

रही हो ।

दोस्ती निभाना था इसलिये जाना ज़रुरी था, वर्ना लड़ाई पक्की थी।

तो चिन्टु ने तय किया कि पहले स्कुल से घुम लु , फ़िर कोचिंग

चला जाउँगा क्योकि स्कुल घर से काफ़ी नजदीक था । यह सोचकर

स्कुल चला गया ।

टीचर ने रोक लिया और उनका कहना था कि जब तक पुजा न हो जाये

तुमको नही जाना है । क्योंकि वो टीचर उसे बहुत मानते थे ।

फ़िर भी बात–बात मे उसने बोल दिया कि, “सर, पता है, अभी मुझे

कोचिंग भी जाना है और वहाँ का भी टाईम 11 बजे ही था ।

परन्तु टीचर शायद उसकी बातो को समझ नही पाये कि वह कह्ना

क्या चाह्ता है? और वे बहुत प्रेमपुर्वक बोले, “हा चले जाना तुरन्त हो

ही जायेगा” ।

थोडी देर मे पुजा सम्पन्न हुई और वह प्रसाद लेकर जल्दी मे निकल

पड़ा । घर आया, प्रसाद रखा और बाइक ले कर निकल गया । क्योंकि

कोचिंग मे ये भी नोटिस था कि “सबको आना अनिवार्य है” ।

लेट हो गया था । रास्ते मे इक तीनमुहानी मोड़ पर चिन्टु कि बाइक

एक दुसरी बाइक से टकराते हुये निकल पड़ी । शायद ये ईश्वर का

आशिर्वाद था कि कुछ अनहोनी न हुई । परन्तु दिल कि धड़कन काफ़ी

तेज़ हो गयी थी । फ़िर भी पहुँचने कि जल्दी थी । चिन्टु पहुँच गया ।

वहाँ जाकर देखा कि हवन पुरा होने ही वाला था, वह वही खड़ा रहा ।

लेकिन यह क्या ? आज का मौसम तो बदला हुआ नज़र आ रहा

था । वो लड़की जो चिन्टु की सबसे अच्छी दोस्त है, वो ही आज

इग्नोर कर रही थी । बात समझ से बाहर थी, फ़िर भी अचानक

नजर मिली तो चिन्टु ने मुस्कुराते हुये पुछा : कब आयी? लड्की : जब

आना था। चिन्टु : अजीब हाल है… ये क्या जबाब हुआ?

उसके बाद वह अपनी सहेलीयो के साथ व्यस्त हो गयी। चिन्टु को

लगा कि आज तमन्ना गुस्सा है फ़िर जब वो अपने लिये प्रसाद लेकर

आ रही थी तो चिन्टु इशारे मे बोला : एक मेरे लिये भी लेते आना ।

प्रसाद तो ले आयी परन्तु गुस्सा अभी शांत नही हुआ था । और

आज का गुस्सा भी हमेशा से अलग था । चेहरे पर मुस्कान और दिल

मे गुस्सा, चिन्टु बात करने कि कोशिश करता रहा और वो अनजाने

कि तरह व्यवहार करती रही ।

प्रसाद खाने के बाद लड़को-लड़कियों के बीच अंताक्षरी प्रतियोगिता

कराई गयी । चिन्टु कि तबियत भी ठीक नही थी इसलिये वह केवल

सुन रहा था, परन्तु उसकी दोस्त तमन्ना बढ़–चढ़ कर हिस्सा ले रही

थी।

अब भोग खाने कि बारी आयी । दोपहर के 3 बज चुके थे । खाने

के दौरान थोड़ी बातचीत भी हुयी ।

तमन्ना : लेट क्यो आये तुम? ( थोड़ा गुस्से मे…)

चिन्टु : स्कुल मे सर ने रोक लिया ।

तमन्ना : मै 10:45 से ही आयी हुं । पर तुम्हारा कुछ ठिकाना नही

था।

चिन्टु : साँरी… बट पता है आज आ गये वही बहुत है, भयानक

ऐक्सीडेन्ट से बचा आज। बच गया वही बहुत है।

तमन्ना : क्या? कैसे? लगा तो नही?

चिन्टु : नही , लेकिन बाइक स्किड कर गयी थी पूरी ।

तमन्ना : ध्यान नही रख सकते हो अपना? अगर आज कुछ हो जाता

तो मेरा क्या होता?

चिन्टु : मतलब?

तमन्ना : कुछ मतलब नही, ध्यान से ड्राइव किया करो बस…। तुमको

कुछ नही होना चाहिये… समझे?

चिन्टु: हाँ...

भोग खाने के बाद अब घर आने का वक्त आ गया। सब अपने-अपने घर आने लगे। तमन्ना के पिताजी भी कार से आ गये ।

तमन्ना जाने लगी, लेकिन जाते-जाते वो फ़िर से बोली : ठीक से जाना, अपना

ध्यान रखना और ड्राइव आराम से करना…बाय्…………

ये सारे शब्द चिन्टु के कान मे बार-बार गुँजने लगे…लेकिन वह

इसका मतलब न समझ सका…कभी पुछता भी तो तमन्ना बात बदल

देती।


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