एक लड़की … दो जान…।

एक लड़की … दो जान…।

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सरिता और सुरेश दोनो एक ही गाँव के रहने वाले थे। लेकिन दोनो का घर गाँव के दो कोनो पर था। सरिता का घर गाँव के उतर ओर तो सुरेश का गाँव के दक्षिण ओर। फ़िर भी दोनो मे गहरा लगाव था।

दोस्ती की शुरुआत हुई गाँव के प्राथमिक विद्यालय से , जहाँ कि दोनो पढाई करने जाते थे। दोनो एक ही वर्ग मे पढते थे। और जब शिक्षक पढा रहे होते थे तब दोनो वर्ग मे पढाई करने के बदले गोटिया खेला करते थे। टिफ़िन के वक्त भी साथ ही खेलते और बैठ कर बात किया करते थे। ऐसा लगता था मानो दोनो सगे भाई-बहन हो। यहाँ तक कि छुट्टी के बाद भी दोनो साथ ही आधी रास्ते तक आते फ़िर अपने-अपने घर के लिये चले जाते।

समय बीतने के साथ वक्त भी ढलता गया, और अब दोनो किशोरावस्था कि उम्र मे आ चुके थे। परन्तु गाँव के माहौल मे रहने के बावजुद भी इनमे कोइ बदलाव नही आया बल्कि इनका आकर्षण कम होने की जगह उम्र के साथ बढता गया । और इन्हे देखने से तो लगता ही नही था कि ये गाँव मे रह रहे हो, क्योकि जैसा शहर के बारे मे कहा जाता है कि लड़के-लड़कियां दोस्त होते है साथ घुमने जाते है ठीक वही दोस्ती यहाँ भी नजर आ रही थी। यु कहा जा सकता है कि ये दोनो पश्चिमी सभ्यता को अपनाने लगे थे।

इसी बीच सरिता के पिताजी भी स्वर्ग को चल बसे। माँ ने बहुत मुश्किल से घर संभाला क्योकि सरिता के चाचा जी लोग तो थे लेकिन बस कहने के लिये। क्योकि वेलोग इनकी मदद करने कि जगह धन हड़पना चाहते थे।

लड़की होने के कारण सरिता को भी बहुत कुछ सुनने मिलता था , तथा सरिता कि माँ के लिये सबसे बड़ी मुश्किल थी तो सरिता कि शादी।

लेकिन सरिता ने इस समस्या को ध्यान मे न रखते हुये सुरेश क साथ आकर्षण को प्यार मे बदल डाली। और एक दिन सुरेश को प्रपोज भी कर दी। सुरेश ने स्वीकार कर लिया।

उसके बाद ये दोनो तो खुश रहने लगे परन्तु ये खबर जब गाँव के लोगो तक पहुँची तो सब सरिता कि माँ को ताना मारने लगे।

माँ बेचारी बनी रही, कितना भी समझाता परन्तु सरिता के सर से प्यार का भुत उतरने का नाम नही ले रहा था।

कुछ लोगो ने सलाह दिया कि सरिता बड़ी हो गयी है अच्छा होगा अगर इसकी शादी हो जाए तो। ये सलाह सरिता कि माँ को भी अच्छी लगी क्योकि उन्हे लगा कि शायद शादी के बाद इस प्यार के चक्कर से छुटकारा मिल जाये। लिकिन शायद ईश्वर को कुछ और मंज़ूर था।

जैसे ही घर मे शादी कि बात शुरु हुई तो सरिता का कहना था कि “मै सुरेश से ही शादी करुंगी नही तो मर जाउंगी।'

मामला गंभीर था इसलिये गाँव मे पंचायत करानी पड़ी। पंचो ने मिलकर उन दोनो को

समझाया कि एक ही गाँव मे शादी नही हो सकती। इस फ़ैसला के बाद उन दोनो के मिलने पर भी रोक लग गई।

बहुत प्रयास के बाद दोनो कि शादी तय हो गयी ओ भी बस दस दिन के अन्तराल मे। सुरेश के शादी के ठीक दस दिन बाद सरिता कि भी शादी होनी थी।

यहाँ तक तो सब कुछ सामान्य था, लेकिन अचानक गाँव मे खबर आई कि सुरेश अपनी शादी से ठीक पहले वाले दिन आत्महत्या कर लिया है। और सुसाइड नोट मे उसने आत्महत्या का वजह सरिता को बताया था। इस घट्ना के बाद पुरा परिवार का माहौल बदल गया, तथा खासकर उसका भाई रमेश अपने भाई के मौत के बाद बौखला गया था। और अब वह पागल के जैसा व्यवहार करने लगा था।

सरिता कि शादी कि सारी तैयारियाँ हो चुकी थी। बारात भी आ चुकी थी। और अब द्वारपुजा होने वाली थी। पुजा के लिये लड़का को बैठाया गया और पुजा शुरु हुई। लड़का के पास उसका बड़ा भाई खडा था।

अचानक लड़का झुकने लगा मानो उसे नींद आ रही हो या उसका पैर लड़खडा गया हो। उसे

सहारा देते हुये उसका बड़ा भाई उसे पकड़ा। तब तक यह क्या अनर्थ हो गया? उसके सीने से खुन की धारा कैसे बह्ने लगी? ये देखते ही भगदड मच गयी, सब लोग भागने लगे।

तब पता चला कि सुरेश के भाई रमेश ने सरिता से अपने भाई का बदला लेने के लिये उसके होने वाले पति को ही मार डाला। और गोली चलाने के बाद वह खुद भी फ़रार हो गया।

इस तरह उस एक लडकी के चक्कर मे दो लोगो कि जान चली गई। और इस घटना के बाद अब तो उस गाँव मे कोइ शादी का नाम भी नही ले रहा था ऐसा लग रहा था कि उस गाँव में शादी थम सी गई हो।


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