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वडोदरा मध्यस्थ जेल में एक सप्ताह के लिये ‘सर्जन आर्ट गेलेरी वडोदरा “द्वारा एक आर्ट शिविर का आयोजन किया गया, गुजरात जेल विभाग के सहयोग़ से।

 “मेरा परिवार, मेरा प्यारा घर” विषय देने पर इन बंदिवान कलाकारों का काम उनके चित्रों में उनके विचार भावनात्मक संवाद के साथ स्पष्ट नज़र आया कि ये लोग अपने घर-परिवार,अपने बच्चों को याद कर रहे हैं। श्री हितेश राणा, श्री आनंद गुडप्पा, श्री कमल राणा, श्री मूसाभाई कच्छी, जैसे होनहार चित्रकारों के साये में कलाकार्यशाला से ज़्यादातर प्रतिभागियों को एक मंच मिला जो उनकी प्रतिभाओं को बाहर ला सका। इस बात से प्रभावित सर्जन आर्ट गेलेरी वडोदरा के श्री हितेश राणा को एक और कार्यशाला के आयोजन के अपने विचार करने पर मजबूर होना पड़ा।

हालांकि यह एक्रेलिक रंग तथा कैनवास के साथ नया प्रयोग था पर सभी प्रतिभागियों ने बड़ी ही चतुराई से उनके चित्रण में भावनात्मक रुप से जुड़ कर ,निष्ठा से निपटाया। उसका द्रष्टांत यह है कि 27 साल के कुंवारे बंद जसवंत मेरवान महाला ,जिसने ना कभी कैनवास देखा था ,उसने गुजरात के ढोंगार के अपने पितृक गांव के खेतों का चित्र बना दिया।

एक और प्रतिभागी 31 साल के विनोद भगवानदास माळी ने अपने पुरानी यादों को दर्शाया जहां उन्होंने कुशलता से अपने आपको दादी की गोद में एक बच्चे के रुप में माता पिता के साथ चित्रित किया। वो अपनी पुरानी यादों के खयाल को, उस प्यारे घर और परिवारजनों को याद करते हैं। उनका कहना है कि यह कला कार्यशाला से उनके घावों को भरने में बहुत लाभांवित हुई है इसने उन्हें अपने कौशल को साबित करने का मौका दिया जो उनके माता पिता को गर्व कराने में सक्षम हैं। जब की बका” उर्फ़े भूरा तडवी ने अपने व्यथित मन से एक माँ को अपने 6 वर्षिय स्कूल जाते हुए बच्चे को तैयार करते हुए दिखाया गया है । पृष्टभूमि पर फूलों की माला पहने लगाई हुई अपनी तस्वीर से वो यह दिखाना चाहता है कि अब वह अपने घर-परिवार के लिये अधिक कुछ नहीं है।

पादरा जिले के कुरल गांव के 29 साल के सिकंदर इब्राहिम घांची ने ‘विरह’ चित्र में अपनी पत्नी जो गोद में अपनी 6 माह की बच्ची को लेकर घर के आँगन में उनका इंतज़ार कर रही है। और स्वयं को दिल के निशान से बनी सलाख़ों के पीछे आंसु बहाते दिखाया है। घांची कला शिविर में अपने आप को खुले आम व्यक्त करते हुए बड़ी ही दृढ़ता से यह कहता है कि उसका यह चित्र पूरी दुनिया में दिखाया जाना चाहिये। वह ‘विरह’ के इस चित्र से अपना दर्द दिखाकर इसका भाग बनने की वजह से खुश है।

40 वर्षिय मनोज पटेल जिन्होंने इससे पहले सेना में सेवा की। जेल में आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के वक्ता का रुप बड़ी ही निष्ठा से निभा रहे हैं।

अब वह अपनी संवेदनशील गुजराती कविताओं की रचना भी करते रहते हैं। उन्होने अपने चित्र में ‘जेलों में रक्षा बंधन’के महत्व को दर्शाया है। मनोज एक सच्चे, प्रेरणास्रोत हैं और सभी प्रतिभागियों के लिये उपयोगी हैं। उन्होने पश्चिम बंगाल के राजेश निमायचंद्र मित्ते के साथ बी.ए. का अध्ययन किया है। साल की आयु के राजेश निमायचंद्र मित्ते , जो कभी स्टेनोटाइपीस्ट और बढ़ई का काम करते थे आज चित्रकार भी बन गये हैं। वह ये कला कार्यशाला के संरक्षक रहे हैं। वह कहते हैं ‘ चित्रकला ने उन्हें पुन:जन्म दिया है। इससे उन्हें बहुत ख़ुशी और संतुष्टि मिली है। वे ये भी कहते हैं कि मैं अपने जीवन की कल्पना, कला के बिना कर ही नहीं सकता। उन्होने महिला की विभिन्न भूमिकाओं को उनकी मुसीबतों को ,अपने परिवार के प्रतिरोध के साथ दर्शाया है कहते हैं जेल की तुलना में अपना संघर्ष ज़्यादा है।

ओरिस्सा के कनैया लींगराज प्रधान, छोटी ही उम्र में पहली बार जेल में आये हैं। अपने तीन भाइयों के साथ गुजरात के सूरत में काम करते थे। जिन्होंने धान के खेत में अपनी पीठ पर बच्चा लिये काम करती महिला की तस्वीर को दर्शा कर उन कृषि मज़दूरों कि व्यथा को याद किया है जो अपने परिवार के जीवन के दो छेड़े जोड़ने के लिये काफ़ी मेहनत करते रहते हैं।

गुजरात संजाण के 27 साल के सतीष सोलं जिन्होंने अपने जेल में रहते हुए ही अपने पिता को खो दिया।रक्षाबंधन की स्मृति में उनकी बहन उन्हें राखी बांधते हुए और दादीमाँ को ये दृश्य निहारते हुए दिखाया है।

जितेन्द्रकुमार मेवालाल त्यागी ,सूरत के 26 साल के साइनबोर्ड के यह कलाकार मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं,जिन्हो ने महिला और बच्चे के चित्र के साथ अपने वयोवृध्ध माता पिता को दिखाया है जो उसके रिहाई का इंतज़ार कर रहे हैं।

सतीष सोलंकी और जितेन्द्र त्यागी के लिये तो चित्रकला शिविर भविष्य के लिये एक ताज़गी से भरा मंच है।

28 वर्षिय शोककुमार भोजराजसींह, जिनका पुत्र जो पाठशाला जाना चाहता है पर अपनी आर्थिक परिस्थिती के चलते ये सफ़ल नहीं हो रहा। अपने चित्र के माध्यम से पाठशाला जाते हुए युनिफोर्म पहने बच्चों के समूह की और अपनी दादी का ध्यान दिलाने के लिये इशारा करते हुए अपने बेटे को दिखाया है।

दिलीपभाई मोतीभाई, पूर्व सरकारी कर्मचारी बारह से अधिक वर्ष से जो जेल में हैं।

अपने पिछले जीवन के शांतिपूर्ण घर-परिवार को याद कर रहे हैं। परिवार के कमाने वाले एकमात्र सदस्य होने के नाते अपनी अनुपस्थिति में घर की आर्थिक परिस्थिति दर्शाने का प्रयास किया है अपने चित्रकला के माध्यम से किया है।

अर्जुन सिंह राठोड, वडोदरा के ही वतनी जो आयकर विभाग में डेप्युटी के पद पर थे, उन्हें अपने घर की बहुत याद आ रही है ये अपनी दिलचस्प कला से दिखाया है। जिसमें अपने दो बच्चों को पकड़े हुए एक माँ को चित्रित किया है। उन्होने अपनी भावनाओं को केनवास पर दर्शाते हुए आयोजकों की सराहना की है।

जिग्नेश कनुभाई कहार, 30 साल के नवसारी के, यह मछुआरे का धंधा करके सुखी जीवन बिताने वाले यह बंदी अब बस छूटने ही वाले हैं। चित्र द्वारा उनके छूटने का इंतज़ार करते हुए अपनी माँ को चित्रित किया है।

नीतीन भाई पट आयु 47 के कालवडा, वलसाड जिले के रहीश ने खूबसुरत नारियल के पेड़ो से घिरे घर में अपने परिवार के सदस्यों में अपने पिताजी, छोटा भाई ,जीजाजी और अपने भतीजे को दर्शाया है ,अपनी पत्नी को अपनी रिहाई की मंदिर में प्रार्थना करते हुए दिखाया है।

अनवर अली मलेक आयु 38 जंबुसर का रिहायशी कढाई का कारिगर ,कुदरत के चित्र के साथ अपने घर के चित्र में जानवर पक्षी और पानी भरकर आती महिलाओं के साथ ,आँगन में बैठी बच्ची को खिलौनों के साथ दिखाया है। इस कलाकार ने बड़ी ही निपुणता से बिजली के खंभे के पास खड़े व्यक्ति को अपनी बच्ची का हाथ पकड़े द्रष्टिमान करते हुए परिवार की 11 साल लंबी जुदाई को दिखाया है। जिसे चित्रकला खुश रखती है।

अर्जुन रामचंद्रभाई पार्टे ,40 साल के सयाजीगंज वडोदरा के ही इस कलाकार ने रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर हाथ में राखी पकड़े अपने बेटों का घर पर इंतज़ार दिखाया है। कैनवास पर ये उनका पहला प्रयास है।

प्रशांत राजाराम बोकडे ,27 साल के महाराष्ट् के सुनार को जेल में आये 9 साल हो गये। उसने जिसे अभी तक देखा भी नहीं है ,उस भतीजी को जन्मदिन विश किया है और उसे ‘सपना’ नाम भी दे रखा है। ‘सपना’ वो कहते हैं उन्हें उसका जन्मदिन भी याद नहीं पर उसका जन्मदिन हर रोज़ मनाते हैं। उसकी बहुत याद आती है।

अंत में महेश सोलंकी आयु 28 वर्ष कामदार ने एक पुरानी हवेली जो जेल सी दिखाई देती है दिखाया है। अपनी केरीयर के खो जाने दुखद परिस्थिती से आहत इस कलाकार की माँ भी इसी जेल में है।

अंत में जब ये प्रदर्शिनी को जनता के सामने 10 अगस्त'सर्जन आर्ट गैलरी' में ही रखा गया तब वो दिन इस टीम और मेरे लिये बहुत बड़ा दिन था। प्रशांत राजाराम बोकडे के चित्र से प्रदर्शीनी को जनता के लिये खोला गया। मेरी एक गुजराती रचना भी इस ‘केटलोग’ पर रखी हुई थी। मुझे इस के बारे में जब बोलने को कहा गया तब मैंने सभी प्रदर्शनी में आये लोगों से कहा कि आप चित्र तो बना लेंगे पर आप इनकी तरह संवेदनाएं नहीं भर सकते।

यहाँ बंदिवानों के रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था। पर जिन्होने अपने विचारों को चित्रों में उतारा था वो बंदिवानों की ग़ैर मौजूदगी उन्हें बहुत खल रही थी। कायदे के हिसाब से ये भी ज़रूरी था। जब मैं जेल में उन बंदिवानो से मिली वो बड़े उतावले हो रहे थे ये जानने के लिये कि प्रदर्शनी में क्या क्या हुआ। पर मैं रो दि। कुछ कह नहीं पाई। एक केटलोग से उन्हें सब कुछ बता दिया। वो भी रोने लगेकेदी सुधारणा कार्यक्रम” के अंतर्गत गुजरात जेल के आई जी श्री पी.सी.ठाकुर का प्रयास बेहद सराहनीय है। जो ऐसी प्रतिभाओं को किसी न किसी माध्यम से जनता समक्ष लाने का प्रयास करते रहते हैं।


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