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सर्कस के शेर

सर्कस के शेर

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सर्कस में देखा ! एक दिन, जंगल के राजा कहे जाने वाले शेर, पाँच-छह शेर ! जिनकी दहाड़ से गूंज उठता है जंगल, कांप उठती है रूह, जंगल के हर प्राणी की। वही शेर चल रहे थे, उठ रहे थे, बैठ रहे थे, नाच रहे थे, करतब दिख रहे थे, अपने साथ पिजड़े में बंद एक दुबले पतले रिंगमास्टर के इशारों पर ! शेर, अगर उनमें से एक भी ज्वलंत नेत्रों से देखते हुए गुर्रा भर दे ! तो क्या होगा ? ये अथाह ताकत के स्वामी, साक्षात यमराज के दूत अगर अपने आप को पहचान लें तो उन्हें कैद करने वाले उनके तमाशबीनों का क्या होगा ? लेकिन नहीं ! रिंगमास्टर जानता है ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि उसे पता है, वो डरते हैं, भयभीत हैं। उसके "सपाक" से होने वाले चाबुक से। उन्हें ये एहसास नहीं है कि थोड़ी सी चोट देने वाले ये चाबुक उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्या ये अविश्वनीय विडंबना नहीं है ? लेकिन ये सच है। यही सच है उन्हें नहीं पता अपनी ताकत को पहचानना और वक्त ज़रूरत पर उसे इस्तमाल करना !

कब तुम्हारी नींद उचटेगी, कब तुम डरना छोड़ोगे, कब तक इस व्यवस्था के आगे घुटने टेकते रहोगे ? तुम, इन्हीं शेरों की तरह हो और तुम्हारे दुख ! तुम्हारी बेबसी ! तुम्हारी लाचारी ! तुम्हारे आस पास के अवरोध ! यही है तुम्हारे रिंगमास्टर। अब तमाशा बनना बंद हो जाओ, कुचल डालो। इन्हें, मुक्त हो जाओ इनसे, इनके सर्कस से अपनी स्वंतत्रता के लिए, अपने स्वाभिमान के लिए।


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