सोरठी बृजाभार 16
सोरठी बृजाभार 16
भाग 16
सेठ धनिक लाल देवकुमारी से कहता है ,"बेटी तू दूध पी लें मैं अभी जाकर छबि और उसके परिवार से क्षमा मांग कर ले आता हूं और तुम्हारा विवाह धूम धाम से करूंगा।"
देवकुमारी कहती है ,"बाबू जी पहले यह तो देखिए छबि कहां पर है उसे कालिया कहां ले जाकर फेक आया है पता नही।"
पास खड़ी दाई के रुप में केतकी मुस्करा कर सोचती है ,"जब वह मिलेगा तब तो उसे ढूंढेंगे , इनके पहुंचने के पहले ही कर्कोटक उसे गायब कर देगा ,*!!
सेठ जी घूम कर दाई से कहते है ,"ये कालिया कहां गया उस से पूछो वह कहां छोड़ आया छबीनाथ को।"?
दाई कहती हैं ,"वह शायद आपके आदेश से उधारी लाने गया है ,*!!
सेठ कहता है ,"मैने कब उधारी लाने के लिए कहा ,कोई बात नही मैं स्वयं जा कर उसे ले आता हूं , दाई तब तक तुम इसे भोजन कराओ , मेरी पुत्री ने तीन दिन से कुछ खाया नही है ,और छबि के लिए भी भोजन बना कर रखना उसने भी कुछ खाया नही होगा।"
सेठ जी घर से बाहर जाता है ,*!!
दाई मुस्कराकर देवकुमारी को देख कहती है ,"पुत्री चलो खा लो अब तो प्रसन्न हो ना अब तो तुम्हारे मन के अनुरूप सब हो रहा है , *"!!
कालिया बना कर्कोटक अकेले उस स्थान पर पहुंचता है जहां पर छबीनाथ को छोड़ आया था ,छबीनाथ उसे देख छुपने का प्रयास करने लगता है , उसे छुपते देख कर्कोटक मुस्करा कर देखता है ,!!
कालिया प्यार से कहता है ,"छबीनाथ ,मेरे प्यारे छबीनाथ , कहां चले गए , मैं तुम्हे एक सुखद समाचार देने आया हूं ,बाहर आ जाओ मैं तुम्हारा शत्रु नही हूं , में तो इस सेठ की चाकरी करता हूं उसके कहने पर ही विवश होकर तुम्हे मारता हूं , *"!!
छबीनाथ सोच में पड़ जाता है ,!!
कालिया के बार बार अनुरोध करने पर वह बाहर आता है ,तो उसे देख कालिया हाथ जोड़कर कहता है "मुझे क्षमा करो छबीनाथ एक तो तुम ब्राह्मण पुत्र हो और उस पर तुमने तो प्रेम किया और वह भी पवित्र प्रेम , प्रेम करना कोई अपराध नहीं है , यह बात भला उस निर्मोही सेठ को कौन समझाए।"
छबीनाथ कहता है ,"मुझे एक बार केवल एक बार देवकुमारी से मिलवा दो , मैं तुम्हारा बहुत आभारी रहूंगा।"
कालिया कहता है ,"इसलिए तो आया हूं , हमसे तुम दोनो की तड़प देखी नही जा रही है ,सेठ जी ने तो तुम्हारे प्राण लेने के लिए लठैतों को भेज दिया है , उन्ही से बचाने के लिए आया हूं , दाई ने ही मुझे
तुम्हे सतर्क करने भेजा है और हमने विचार किया है की आज रात तुम्हे तुम्हारी देवकुमारी से मिलवा भी देंगे और फिर तुम्हारे साथ ही देवकुमारी को भेज देंगे तुम लोग यहां से दूर जाकर अपनी जिंदगी जी सको।"
छबीनाथ आश्चर्य चकित सा कालिया को देखता रह जाता है ,वह सोच में पड़ जाता है कि यह सच कह रहा है या झूठ *"!!
कलिया कहता है ,"तुम्हें मुझ और विश्वास नहीं हो रहा हो तो चलो मैं दिखाता हूं।"
वह उसे साथ लेकर आगे बढ़ता है ,तो लठैत छबीनाथ को ढूंढते हुए बाते कर रहे थे ,"सेठ जी ने कहा जहां भी छबीनाथ दिखलाई पड़े वही उसकी इहलिला समाप्त कर देना ,परंतु वह कहां छुप गया ,तभी दूर से सेठ जी के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं ,वह भी उसका नाम ले लेकर पुकार रहे हैं।"
कलिया कहता है ",देखा अब तो मेरी बात पर विश्वास हो रहा है की नही ,यदि नही हो रहा है तो मैं सेठ जी को यहीं बुला लेता हूं ,अब तुम सोच लो देवकुमारी से मिलना है की सेठ जी के हाथों मृत्यु को प्राप्त करना है ,सेठ जी ने प्रण किया है की तुम्हे मारकर ही पानी पियेंगे।"
छबीनाथ कहता है ,"मैं रात्रि में कहां आऊं ,"!!?
कलिया मुस्करा कर कहता है ,"तुम रात्रि में कोठी के पिछवाड़े आ जाओ मैं वहां एक सीढ़ी लटका दूंगा उस से चढ़कर ऊपर आ जाना फिर देवकुमारी को तुम्हारे साथ ही भेज देंगे ,बस अभी कुछ और देर कहीं छुप जाओ ताकि कोई तुम्हे ढूंढ नही पाए ,जाओ अंदर कहीं छुप जाओ सेठ कितना भी प्यार से बुलाएं तुम बाहर मत आना।"
छबीनाथ भागते हुए अंदर की ओर जाता है।"
कलिया मुस्करा कर जाता है।"
उधर ब्रम्हदेव भिक्षा मांग कर घर लौटता है ,घर पर छबीनाथ को ना पाकर वह वसुधा से उसके बारे में पूछता है ,!!
वसुधा कहती हैं "वह जिद्द करके देवकुमारी से मिलने गया है , मैने बहुत माना किया पर उसने आपकी सौगंध देकर मुझे विवश कर दिया।"
ब्रह्मदेव कहता है ,"तुमने उसे आज्ञा नहीं दिया उसके मृत्यु को आज्ञा दे दिया ,जिस भय से मैंने गांव छोड़ा , उस कार्य को तुमने कर दिया ,ही ईश्वर मेरे पुत्र को बचाइए ,चलो हमे शीघ्र चलना होगा।"
रात्रि हो चुकी थी ,छबीनाथ छुपते छुपाते कोठी की ओर बढ़ रहा था , सेठ जी अभी तक उसे हो ढूढने में लगे हुए थे वह अभी तक घर नहीं आए थे।"
छबीनाथ कोठी के पीछे पहुंचता है , वह देखता है एक सीढ़ी ऊपर से नीचे की ओर लटकी हुई थी , वह फल चारो ओर देखता है ,उसके मन में अभी भी भय भरा हुआ था , वह भगवान का नाम लेकर सीढ़ी पर चढ़ना शुरू करता है , वह धीरे धीरे बिना स्वर किए ऊपर चढ़ता है ,"!!
वह खिड़की के पास पहुंच कर देखता है तो देवकुमारी पलंग पर लेटी हुई थी , वह धीरे से खिड़की के अंदर प्रवेश करता है , और वह देवकुमारी के समक्ष जाकर खड़ा होता हैं, *"!!
उसे देखते ही देवकुमारी चौक उठती है और वह प्रसन्न होकर कहती है ,"तुम कहां थे , दोपहर से बाबूजी तुम्हे ढूंढ रहे हैं वह मन गए है हमारे विवाह के लिए।"
छबीनाथ चौक कर उसकी ओर देखता है और कहता है "विवाह के लिए ढूंढ रहे हैं या फिर मेरे प्राण हरने के लिए।"
वह कहती है ,"वह तो हमारा विवाह करने के लिए ही तुम्हे लाने गए थे , अब हमे किसी का भय नहीं है।"
देवकुमारी उसके पास जाकर उसके गले लग जाती है
तभी कालिया और दाई आती हुई कहती है"मिलन हो गया तुम लोगो का अब बिछड़ने का समय आ गया।"
दोनो जब तक समझते तब तक कालिया और उसके दूसरे लठैत साथी छबीनाथ पर लाठियां बरसाना शुरू कर देते है ,देवकुमारी यह देख चीख पड़ती है ,कुछ ही लाठियां पड़ने पर भूखे प्यासे छबीनाथ के प्राण पखेरूं उड़ जाते हैं , कलिया उसके पार्थिव शरीर को उठाकर नीचे फेंकता है ,देवकुमारी चीखती हुई उसके पीछे कूद पड़ती है और ऊपर से नीचे गिरने पर उसके भी प्राण निकल जाते हैं, देवकुमारी की चीख सुन सेठ भागे हुए घर के पिछवाड़े आते हैं , वहां पर छबीनाथ और देवकुमार के शव देख वह चीखकर ऊपर देखते हैं तो ऊपर से झांक रहे दाई और कालिया से कर्कोटक और केतकी निकलकर गायब होते है , सेठ जी वहीं गिरकर विलाप करने लगते हैं।"
प्रथम जनम समाप्त ,
क्रमशः
