श्राद्ध रिश्तों का
श्राद्ध रिश्तों का
शुभांगी सुबह सुबह सारे काम निपटा ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजने लगी अब कौन आया इतनी सुबह? सोचते हुए जैसे ही उसने दरवाजा खोला ।एकबारगी ही उसके पैर पीछे हट गए।"आनंद तुम यहाँ ?" उसके गले से मानो आवाज ही न निकल रही हो।वो वापस अंदर मुड़ी और सोफे पे बैठ गई उसे ऐसा लगा मानो पुरा घर उसके आँखों के आगे नाच रहा हो किसी तरह उसने अपनेआप को संभाला।
आनंद भी अंदर आकर बैठ गया।दोनों के बीच खामोशी पसरी थी।"मैं फ्रेश होता हूँ" आनंद ने कहा और बाथरूम की तरफ चला गया पर शुभांगी का पूरा बदन पसीने से भीग चुका था "आखिर इतने साल बाद यहाँ क्या करने आ गए हैं आनंद?"
शुभांगी कमरे से बाहर आकर बाहर बरामदे में बैठ गई उसे अंदर घुटन सी होने लगी थी बाहर बैठ कर उसकी जान में जान आई।उसने एक लम्बी साँस ली।
शुभांगी के दिल में तूफान सी हलचल मच रही थी ,आनंद उसका पति आखिर इतने साल बाद क्यों आया है? पुरानी सारी बातें उसके सामने आने लगी। अपनेआप से ही बातें करने लगी।
जिसके साथ मैंने शादी के दस साल रंग भरे रंगीन यादों से सजाया था वो अचानक से बेरंग हो जाएगा कभी न सोचा था।मेरे तो हर साँस में तुम थे,हर रंग मेरा तुम्हारे प्यार में रंगा था फिर तुमने ऐसा क्यों किया आनंद?हाँ आनंद मेरी गलती थी जो तुम पे आँखें बंद करके विश्वास किया था तभी तो तुम मेरे प्यार को रौंद कर चले गये थे।
कभी-कभी ऐसा होता है की हमारे सामने ही बहुत कुछ होता है और हम उससे अनजान रहते हैं।सब कुछ देखकर भी अनदेखा करते हैं ।मैंने भी तो यही किया था तुम कब रीमा के नजदीक चले गए मुझे पता भी न चला, सामने होकर भी मैं दोस्त ही समझती रही थी।तुमने हमारे शादी के रिश्ते को एक झटके में तोड़ दिया था।
तुम्हारे बिना कभी एक कदम न चलनेवाली मैं उस दिन कितनी अकेली हो गई थी!अपनेआप को मैंने बहुत मुश्किल से संभाला था! तुम्हारे बिना जीना भी आ गया था!तुमने एक बार भी मेरे या अपनी बेटी के बारे में नहीं सोचा!आठ साल की बेटी जब सवाल करेगी तो मैं उसे क्या बताऊंगी तुमने एकबार भी नहीं सोचा था।
आज अचानक पाँच साल बाद तुम वापस आ गए क्यों?मुझे अच्छे से पता है रीमा ने शादी कर ली किसी और से और वो अब देश छोड़कर चली गयी है हमेशा के लिए।मुझे सब पता है आनंद तुम जितना कमजोर समझते थे अब मैं वैसी नहीं रही।
क्या सोचकर तुम वापस आ गए मैं तुम्हें अपना लूंगी?नहीं आनंद तुम्हारे जाने के बाद मैंने कैसे गुजारा किया था मैं ही जानती हूँ।बेटी के साथ उसके हजारों सवालों के साथ तुमनें मुझे अकेला छोड़ दिया था, किस हक से तुम आज आए हो पता नहीं मैं तुम्हें कभी नहीं अपनाउंगी।
तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं अब हमारे जीवन में मैंने जीना सीख लिया है। हवा का एक झोंका कहो या तूफान जो आया था उससे मैंने अपनेआप को संभाल लिया है।मेरे और मेरी बेटी के बीच अब तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।
हाँ मुझे फैसला लेना ही होगा।
शुभांगी ने अपने आप को संभाला और अंदर आ गई।आनंद नहा कर आ चुका था। नाश्ता टेबल पर था उसने आनंद के आगे किया।"आनंद नाश्ता है कर लो ,और हमेशा के लिए यहाँ से चले जाओ ।वापस मुड़कर कभी मत आना इधर !मैंने अपना रास्ता बना लिया है और मुझे अब चलना भी आ गया है मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं!हाँ मेरी बेटी के आने से पहले अच्छा होगा आप चलें जाएं"।
शुभांगी इतना कहकर अपने कमरे में आ गई, न जाने कहां से आज इतनी हिम्मत आ गई थी उसे,उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई जिस आँसु को रोक कर रखा था वो बरबस ही बाहर आ गई उसने अपने आँसुओं को बहने दिया अपनेआप से संतुष्ट थी वो कि उसने अपनेआप को कमजोर नहीं होने दिया आनंद के आगे। शुभांगी ने अपने आप से कहा "नहीं अब कमजोर नहीं हूँ मैं।तुम्हारी जरूरत नहीं है मुझे मैंने तो उसी दिन तुम्हारे साथ जुड़े रिश्ते का श्राद्ध कर दिया था जिस दिन तुमने मुझे छोटी सी बच्ची के साथ अकेला छोड़ गए,किसी और के लिए। श्राद्ध करने के बाद वो रिश्ता हमेशा के लिए उसी दिन खत्म हो गया ।मैं अब जीना सीख गयी हूं।