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Gaurav Chhabra

Children Stories

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Gaurav Chhabra

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रद्दी का भाव!

रद्दी का भाव!

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ये मेरी अपनी कहानी है। हर अनुभव कुछ-न-कुछ सिखाता है, ज़रूरी नहीं की हर अनुभव अच्छा ही हो, पर कुछ दे कर ही जाता है। मैं चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, एक अच्छे अंगेरजी माध्यम स्कूल में। हमने हाल ही में, एक हॉल-बैडरूम-किचन का फ्लैट ख़रीदा था, जो हमारे बजट के हिसाब से बहुत महंगा था ऐसा घरवाले कहते थे। पिताजी नौकरी पेशा थे, बिज़नेस करना चाहते थे, अपने साथी के साथ मिलकर उन्होंने एक दुकान खोली थी जिस पर वो ऑफिस से आने के बाद बैठा करते थे। लेकिन दुकान में बड़ा घाटा हो गया है ऐसा मैंने पिताजी से सुना था। मुझे उतना समझ नहीं आता था, क्यों मेरे माता-पिता ने हमें बाहर ले जाना बंद कर दिया, खर्चों पर रोक लगा दी। हमने थोड़े कहा था घर लो, मुझे अच्छा नहीं लगता था। एक दिन मैंने अलमारी का लॉकर खोल कर देखा की मेरे घर में कितने रूपए रखे हुए है। मुझे काउंटिंग आती थी, मैंने गिना ९८० रुपये थे। मेरी पॉकेट मनी के हिसाब से वो रूपए बहुत ज़यादा थे। सोच कर बैठ गया की जैसे ही मम्मी स्कूल से आएँगी, उनसे पूछूंगा की इतने रूपये रखे तो है फिर क्यों आइसक्रीम खाने से मना करती हो?

मम्मी घर पर आयी, पिताजी भी लंच पर आये थे। आते ही उन्होंने रद्दी पेपर का बंडल बनाना शुरू कर दिया, रस्सी से उसे बाँधा और दरवाज़े के किनारे रख दिया। खाना खाकर वे ऑफिस चले गए और जाते-जाते मम्मी से कह गए, सुनों! भाव तलाश लेना। मैंने मम्मी से पुछा, "भाव मीन्स व्हाट?", मम्मी ने कहा, "रद्दी कितने रूपए किलो बिकती है उसका रेट। " मैंने पूछा, "भाव का क्या करोगी?" मम्मी ने कहा, "इसे बेच कर कुछ पैसे आएंगे तब हम उससे सब्ज़ी तरकारी खरीदेंगे। ," मैं अपने मन का सवाल पूछता, इसी बीच डोर बेल बजी, मैंने दरवाज़ा खोला और देखा, किराने की दुकान वाले, रमेश भैया आये है। मैंने कहा, "हमने तो कुछ मंगवाया नहीं, आप क्यों आये?" वे हंस दिए, मम्मी ने पूछा, "बिल कितना है। " उन्होंने कहा, १०२० रुपए। मम्मी ने ९८० अलमारी से निकले और २० रुपये अपने पर्स से और बोलीं, "बाकी के २० जब इसके पिता ऑफिस से आयंगे तब भिजवाती हूँ। " रमेश भैया ने धन्यवाद दिया और चले गए।   

मम्मी नहाने चली गई, मैं थोड़ा हैरान था अब क्या करूँ, अब तो ९८० पूरे चले गए, सोचा देखूं मम्मी के पर्स में कितने रूपए है। मालूम चला केवल ०२। मैंने अलमारी पूरी छानी, कहीं पर भी कुछ भी नहीं मिला। अब मैं समझ गया पूरी बात। मम्मी ने बोला, "वो रमेश भैया से पूछना भूल गई की रद्दी क्या भाव लोगे? जा तू पूछ कर आ, समझ गया ना क्या पूछेगा? वहां मत बोलना भाव मीन्स व्हाट?" मम्मी हंस कर किचन में चली गई। मैंने कहा इतना बुद्धू नहीं हूँ, और घर से निकला। उस दिन मैंन रमेश भैया की दुकान, सुरेश अंकल की दुकान, महेश अंकल की दुकान, ईश्वर स्टोर एवं आटा चक्की, सभी से रद्दी का भाव पूछा और जीवन का हिसाब-किताब सीखा अपने नए अनुभव से।


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