पुनरावृत्ति
पुनरावृत्ति
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"वह कहाँ रहता है ?" उसने लगभग झँझलाते हुए कहा।
"कौन ?"
" वही जिसे मैं दराज़ ,अलमारी और पर्दों के पीछे तक में झाँक आई हूं पर आवाज़ नहीं देता?"
सुनती हूँ तो सिर्फ अपनी ही आवाज़ जो बार -बार लौटकर आई है मुझ तक ही।"
"हाँ ,मैंने भी उसे हिमाचल की पहाड़ी में खोजा, हिमालय की ऊँचाई से आवाज़ दी तो मुझे मेरी ही आवाज़ मिली हर बार मुझ तक ...मेरी साँसों के साथ मध्यम लौटती ,विज्ञान उसे खोज नहीं पाया है ,लोग उसे पत्थर में खोजते फिरते हैं और मैं .... लौटा हूँ तो तुम सामने हो तम्हें ही मान लूँ ?
"हाँ मैं ....और मेरे सामने तुम हो तो मैं तुम्हें मान लेती हूं जैसे मानते हैं लोग मंदिर ,मस्जिद और गुरुद्वारा!"