*फौजी*
*फौजी*
सुबह चार बजे फोन की आवाज से मेरी नींद खुली। मैंने फोन उठाया ।उधर से आवाज आई ' हलो, आप राकेश की माँ बोल रही हैं।' मैंने कहा 'हाँ' । उधर से आवाज आई ' राकेश का कुछ पता नहीं चल रहा है। हम लोग खोजने की कोशिश कर रहे है । जैसे ही हमें कोई खबर मिलेगी, हम आपको सूचित करेंगे।'
मेरे हाथ से फोन छूट गया। मैं वही सोफे पर बैठ गई । राकेश मेरा इकलौता बेटा है। वह फौजी है और सीमा पर देश के लिए लड़ रहा है। मेरी आँखों के सामने अतीत घूमने लगा । ऐसा ही एक फोन आज से करीब बीस वर्ष पहले भी आया था। मेरे पति भी फौजी थें और सीमा पर देश के लिए लड़ रहे थें।फोन पर मुझे बताया गया था कि वे लापता हैं। लेकिन फिर वे तिरंगे में लिपटे ही घर आये थें। क्या इतिहास अपने आप को दोहरायेगा। क्या मेरी बहू भी मेरी तरह कष्ट सह कर अपनी चार साल की बेटी को पालेगी। पुनः फोन की घंटी बजी। मैंने तुरंत फोन उठाया । उधर से आवाज आई 'माँ। मै ठीक हूँ। मैं रास्ता भटक गया था'। मैंने ईश्वर से प्रार्थना किया ' हे ईश्वर, इसी तरह सीमा पर लड़ रहे हर फौजी
की रक्षा करना'।
