नन्हीं आंखों के प्रश्न-भाग-३
नन्हीं आंखों के प्रश्न-भाग-३


धीरे -धीरे कई साल निकल गये,अब वो नन्ही बच्ची तेरह बसंत पार कर चुकी थी,उसका चेहरा मोहरा स्पष्ट जाना पहचाने रूप का आकार ले चुका था। जो उस बच्ची के जन्म की कहानी को स्पष्ट करता था।
मालविका ने उस बच्ची का नाम मिनी रखा था,और उसे बताया था कि वो मालविका की बड़ी बहिन की बेटी है जो एक कार ऐक्सिडेंट में मारी गई और मालविका उसकी मौसी है।मिनी एक बहुत समझदार संवेदनशील और भावुक बच्ची थी। मालविका ने उसे अथाह स्नेह दिया था फिर भी मिनीअन्य सामान्य बच्चों के समान ही अपनी मां -पिता के विषय में जानने को आतुर रहती थी,और कल्पनाओं में अपनी मां के अस्तित्व को खोज करती थी। आदर्शपालन-पोषण
को ध्यान में रखते हुए मालविका मिनी को की कृष्ण यशोदा,पुरु अनुसुइया ,सिकंदर ओलम्पिया के शौर्य और वीरता पूर्ण आदर्श किस्से कहानियां सुनाया करती......
एक दिन मिनी एक अखबार में नजरें गड़ाए बैठी थी.
... मालविका ने पूछा "क्या बात मिनी ऐसे क्यूं बैठी हो?"
मिनी ने धीरे से पेपर मालविका को थमा दिया, जिसमें न्यूज की हेड लाइन थी "एक नन्ही नवजात बच्ची का शव कचरे के ढेर में मिला, शहर में दस कन्या भ्रूण हत्या के केश दर्ज किये गये,एक मां ने पांच लड़कियों को धन के लालच में बेच डाला.....उन पंक्तियों को पढ़ कर मिनी शक्ते में तो थी ही मगर उसकी नज़रों में केई प्रश्न झूल रहे थे...
वो बोली "मौसी! आप तो कहती हैं! मां अनुसुइया, मां ओलम्पिया सी-होती हैं।मां "कौशल्या,मां यशोदा-सी होती हैं.मां अथाह स्नेह का सागर,ममता का आंचल होती हैं तो फिर? इन मांओं का ममत्व कहां गया?क्या मां लड़कों की अलग ?और लड़कियों की अलग होती हैं????
तब तो अच्छा है मेरे पास मां नहीं है".....मालविका मौन थी और आवाक् भी ... ................
कई प्रश्न मिनी की आंखों में घूम रहे थे जिनका जवाब मालविका के पास होते हुए भी नहीं था।