मुसाफ़िर

मुसाफ़िर

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मैंने पक्का इरादा कर लिया कि मैं अन्टार्क्टिका जाऊँगा। अपना चरित्र दृढ़ करने के लिए। सभी कहते हैं कि मेरा अपना कोई कैरेक्टर ही नहीं है: मम्मा, टीचर, और वोव्का भी। अन्टार्क्टिका में हमेशा सर्दियाँ होती हैं। गर्मियों का मौसम तो होता ही नहीं है। वहाँ सिर्फ सबसे बहादुर लोग ही जाते हैं। वोव्का के पापा ने ऐसा कहा था। वोव्का के पापा दो बार वहाँ गए थे। उन्होंने वोव्का से रेडियो पर बात की थी। पूछ रहे थे कि वोव्का कैसा है, पढ़ाई कैसे चल रही है। मैं भी रेडियो पर बात करूँगा। जिससे कि मम्मा परेशान न हो।

सुबह मैंने बैग से सारी किताबें बाहर निकाल दीं, उसमें ब्रेड-बटर, नींबू, अलार्म घड़ी, एक गिलास और फुटबॉल की गेंद रख ली। हो सकता है, समुद्री-शेरों से मुलाक़ात हो जाए – उन्हें अपनी नाक पे बॉल घुमाना बहुत अच्छा लगता है। गेंद तो बैग में आ ही नहीं रही थी। उसकी हवा निकाल देनी पड़ी।

हमारी बिल्ली मेज़ पर घूम रही थी। मैंने उसे भी बैग में ठूँस दिया। मुश्किल से सारी चीज़ें अन्दर घुस पाईं।

मैं प्लेटफॉर्म पे हूँ। इंजिन की सीटी बजी। कित्ते सारे लोग जा रहे हैं! किसी भी ट्रेन में बैठ जाऊँगा। ज़रूरत पड़ी तो ट्रेन भी बदल सकता हूँ।

मैं डिब्बे में घुस गया, और थोड़ी ख़ाली जगह देखकर बैठ गया।

मेरे सामने एक बूढ़ी दादी सो रही थी। फिर एक फ़ौजी मेरे पास आकर बैठ गया। उसने कहा:

 “पड़ोसियों को नमस्ते!” – और उसने दादी को जगा दिया।

दादी जाग गई और पूछने लगी:

 “क्या गाड़ी चल पड़ी?” और वो फिर से सो गई।

गाड़ी चलने लगी। मैं खिड़की के पास गया। वो रहा हमारा घर, हमारे सफ़ेद पर्दे, आँगन में हमारे कपड़े सूख रहे हैं... लो, हमारा घर आँखों से ओझल हो गया। पहले तो मुझे थोड़ा सा डर लगा। मगर, सिर्फ थोड़ी देर। जब ट्रेन तेज़ दौड़ने लगी, तो मुझे कुछ ख़ुशी होने लगी! आख़िर मैं अपना चरित्र दृढ़ बनाने जा रहा हूँ!       

खिड़की से बाहर देखते-देखते मैं ‘बोर’ हो गया। मैं फिर से बैठ गया।

“तेरा नाम क्या है?” फ़ौजी ने पूछा।

 “साशा,” मैंने धीरे से कहा।

 “और दादी सो क्यों रही है?”

 “कौन जाने?”

 “कहाँ जा रहे हो?”

 “दूर... ”

 “रिश्तेदारों से मिलने?”

 “हूँ ... ”

 “बहुत दिनों के लिए?”

वो मुझसे ऐसे बातें कर रहा था, जैसे मैं बड़ा आदमी हूँ, इसलिए वो मुझे बहुत अच्छा लगा।

 “दो हफ़्तों के लिए,” मैंने संजीदगी से कहा।

 “अच्छी ही तो बात है। ” फ़ौजी ने कहा।

मैंने पूछा:

 “क्या आप अन्टार्क्टिका जा रहे हैं?”

 “अभी नहीं; क्या तुम अन्टार्क्टिका जाना चाहते हो?”

 “आपको कैसे मालूम?”

 “सभी अन्टार्क्टिका जाना चाहते हैं। ”

 “मैं भी चाहता हूँ। ”

 “देखा!”

 “ऐसा है कि... मैं मज़बूत बनना चाहता हूँ... ”

 “समझ रहा हूँ,” फ़ौजी ने कहा, “स्पोर्ट्स, स्कीईंग... ”

 “वो बात नहीं... ”

 “अब समझा – हर चीज़ में अव्वल!”

 “नहीं,” मैंने कहा, “अन्टार्क्टिका... ”

 “अन्टार्क्टिका?” फ़ौजी ने जवाब में पूछ लिया।

फ़ौजी को किसी ने ड्राफ्ट्स खेलने के लिए बुला लिया। वो दूसरे कुपे में चला गया। दादी जाग गई।

 “पैर मत हिला,” दादी ने कहा।

 “मैं ये देखने के लिए चला गया कि ड्राफ़्ट्स कैसे खेलते हैं।

अचानक... मुझे विश्वास ही नहीं हुआ – सामने से आ रही थी मेरी बिल्ली मूर्का। अरे, मैं तो उसके बारे में भूल ही गया था! मगर वो बैग से बाहर आई कैसे?

वो पीछे की ओर भागी – मैं उसके पीछे। वो किसी की बर्थ के नीचे छुप गई – मैं भी फ़ौरन बर्थ के नीचे रेंग गया।

 “मूर्का!” मैं चिल्लाया “मूर्का!”

 “ये कैसा शोर हो रहा है?” कण्डक्टर चिल्लाया। “यहाँ ये बिल्ली क्यों है?”

 “ये मेरी बिल्ली है। ”

 “ये बच्चा किसके साथ है?”

 “मैं बिल्ली के साथ हूँ... ”

 “कौन सी बिल्ली के साथ?”

 “मेरी। ”

 “ये अपनी दादी के साथ जा रहा है,” फ़ौजी ने कहा, “वो बगल वाले कुपे में है। ”

कण्डक्टर सीधा मुझे दादी के पास ले गया।

 “ये बच्चा आपके साथ है?”

 “वो कमाण्डर के साथ है,” दादी ने कहा।

 “अन्टार्क्टिका... ” फ़ौजी को याद आया। “सब समझ में आ गया... आप समझ रहे हैं, कि बात क्या है: ये बच्चा अन्टार्क्टिका जाना चाहता है। और इसने अपने साथ बिल्ली को ले लिया... और क्या क्या लिया है, बच्चे, तुमने अपने साथ?”

 “नींबू,” मैंने कहा, “और ब्रेड-बटर... ”

 “और अपना कैरेक्टर मज़बूत बनाने निकल पड़ा?”

 “कितना बुरा बच्चा है!” दादी ने कहा।

 “बेवकूफ़ी!” कण्डक्टर ने ज़ोर देकर कहा।

 फिर न जाने क्यों सब हँसने लगे। दादी भी हँसने लगी। हँसते-हँसते उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े। मैं नहीं जानता था कि सब मुझ पर क्यों हँस रहे हैं, और मैं भी हौले-हौले हँसने लगा।      

“अपनी बिल्ली ले ले,” कण्डक्टर ने कहा। “तू पहुँच गया है। ये रहा तेरा अण्टार्क्टिका!”

ट्रेन रुक गई।

 ‘क्या वाक़ई में,’ मैंने सोचा, ‘अन्टार्क्टिका आ गया है? इत्ती जल्दी?’

हम ट्रेन से प्लेटफॉर्म पे उतरे। मुझे वापस जाने वाली गाड़ी में बिठा दिया गया और वापस घर ले आए।



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