मम्माज़ गर्ल
मम्माज़ गर्ल
अरे रिया! क्या खा रही हो बेटा?
समोसा।
समोसा! ये कहाँ से लाई तुम?
दुकान से।
दुकान से तो लाई हो, पर पैसे कहाँ से आए? और तुम दुकान पर कब गई? पूछा भी नहीं!
अरे मम्मी! ये क्या बात हुई! अब क्या सारे काम मैं आपसे पूछ-पूछकर करूँगी? बड़ी हो गई हूँ मैं। जो मेरे मन में आयेगा, मैं तो बस अब वो ही करूँगी।
(कहकर रिया अपने कमरे में चली गई।)
इसे क्या हुआ मम्मी? ये ऐसे जवाब तो कभी भी नहीं देती थी।
पता नहीं। मुझे भी धक्का-सा लगा। सातवीं की बच्ची बड़ी हो गई!
आप परेशान न होओ। मैं बात करता हूँ।
(रिया के कमरे में.........)
कैसा था समोसा रिया?
बढ़िया था भैया।
मेरे लिए नहीं लाईं तुम?
मेरे पास बस अपने लिए ही रूपए थे।
ओह! तो अब भाई के लिए तुम्हारे पास रूपए नहीं रहे। और बहन जो मैं तुम्हारे लिए हर रोज़ कुछ न कुछ लाता हूँ?
भैया, कभी न कभी तो चीजंे़ बदलती हैं ना! तो आज से ही शुरू कर लेते हैं।
तुम ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो? तुम तो ऐसी नहीं हो रिया? क्या हुआ तुम्हें? कल तक तो सब ठीक था। आज अचानक तुम बिलकुल बदली-बदली सी.......... कैसे?
भैया, अब मैं समझ गई हूँ कि मैं बड़ी हो गई हूँ और अपनी हर बात के लिए मुझे घरवालों से पूछने की आवश्यकता नहीं है।
ओह! तो ये बात है। तो तुम इस बात को हमें आराम से भी तो समझा सकती थी। मम्मी से इस तरह बात कर उन्हेें दुःख तो न देती!
बहरहाल मैं समझ गया हूँ। एक बार मम्मी को बुलाकर लाता हूँ और उन्हें भी यह बात समझा देता हूँ। फिर तो तुम खुश हो?
हाँ भैया! तभी तो मैं आपको दुनिया का सबसे अच्छा भैया कहती हूँ कि आप मेरी बात तुरंत समझ जाते हो।
और तभी तो तुम अकेले समोसा खा जाती हो? खै़र मैं अभी मम्मी को बुलाकर लाता हूँ।
(मम्मी, रिया और भैया तीनों कमरे में बैठे हैं।)
मम्मी! आप रिया की बस इतनी-सी बात नहीं समझ सकीं! हमारी रिया बड़ी हो गई है। अब आपको उसकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अब वह रोज़ सुबह जल्दी उठकर अपना नाश्ता व स्कूल के लिए लंच बनाकर लेकर जाएगी। आकर स्कूल से अपनी यूनिफाॅर्म और दूसरे कपड़े साफ़ करेगी। और हाँ अपनी पढ़ाई भी करेगी। रात का खाना, सब्ज़ी-भाजी लाना या कोई भी बाज़ार का काम वह स्वयं करेगी। अपने कमरे की साफ़-सफाई, देखो ज़रा ये पर्दे कितने गंदे हो रहे हैं, तो रिया इन्हें धो लेना और...........
ये क्या भैया मैं ये सब कैसे कर सकती हूँ?
क्यों, क्यों नहीं कर सकती रिया तुम? तुम बड़ी हो गई हो मेरी प्यारी बहन। अभी तो तुम्हें अपने स्कूल की फ़ीस का भी प्रबंध करना है।
नहीं भैया। मैं कैसेे करूँगी ये सब?
तुम बड़ी हो गई हो गुुड़िया। तुम सब कर सकती हो।
मुझे माफ़ कर दो भैया। मैंने ये सब तो कभी सोचा ही नहीं। मेरी सारी सहेलियाँ कल स्कूल की कैंटीन में पार्टी कर रही हैं। सबने कहा कि सब पैसे मिलाकर मज़े से पार्टी करेंगे। मैंने कहा कि पहले मैं मम्मी से पूछ लेती हूँ, तो सबने ‘मम्माज़ गर्ल’ कहकर मेरा मज़ाक बनाना शुरू कर दिया। वे कहने लगीं कि तुम हर छोटी से छोटी बात मम्मी को बताती हो क्या? कब तक हर बात के लिए मम्मी पर निर्भर रहोगी? बड़ी हो गई हो। कुछ निर्णय स्वयं भी लिया करो।
बेटा! सबके घर का माहौल और सोच भिन्न होती है। मम्मी-पापा से पूछना या उन्हें हर बात बताने से न तो मम्माज़ गर्ल बनते हैं और न पापाज़ बाॅय। दिन भर में तुम्हारे साथ क्या हुआ, तुमने किस-किस से क्या-क्या बात की, ये सब बातें हम तुमसे पूछते हैं और तुम हमें बताते हो क्योंकि हम तुम्हें सुरक्षित रखना चाहते हैं। यदि तुम्हारे पूरे दिन की सूचना हमें रहती है तो हम किसी भी अप्रिय घटना से तुम्हें सुरक्षित रखने का प्रयास कर सकते हैं। साथ ही तुम अभी छोटी हो। कितनी ही बातें ऐसी होती हैं, जिनके अप्रत्यक्ष भाव हम बड़े समझ लेते हैं और उसी के अनुरूप तुम्हें किसी व्यक्ति विशेष से दूरी बनाने की भी सलाह देते हैं। हमें सूचना रहती है कि कब, कौन व्यक्ति तुमसे किस प्रकार का व्यवहार कर रहा है। वे बातें तुम हमें भोलेपन में बताते हो, परन्तु हमारे लिए वे तुम्हें सुरक्षित करने का माध्यम बन जाती हैं। माता-पिता की तुम्हें सुरक्षित रखने की यह प्रक्रिया परोक्ष रूप से सदैव चलती रहती है बेटा। हम तुम्हें परेशान करने के लिए नहीं वरन् तुम्हें सुरक्षित रखने और सही-ग़लत को समझाने के लिए तुम्हारी बातें सुनते हैं।
मैं बहुत शर्मिंदा हूँ मम्मी कि मैंने आपके साथ इस प्रकार का व्यवहार किया।
कोई बात नहीं बेटा। बच्चे ग़लती करके ही सीखते हैं। मुझे पता था कि कब तुम समोसा लेने बाहर गई थी? तभी मैंने तुम्हारे भैया को भी तुम्हारे पीछे भेज दिया था। आखि़र तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी है हमारी।
और हाँ! एक बात और। आजकल के माता-पिता के पास अपने बच्चों की बातें सुनने के लिए न तो समय है और न ही धैर्य। इसलिए मम्माज़ गर्ल, पापाज़ बाॅय जैसे शब्दों के पीछे वे अपनी लाचारगी या कई बार स्वच्छंदता को छिपाने का प्रयास करते हैं। बच्चों को ऐसे शब्दों से बाँधकर वे उनकी अपेक्षाओं को समाप्त कर देते हैं। मासूम उम्र में बच्चे बड़े तो होने लगते हैं, परन्तु अनुभवहीन वह आयु जब पथभ्रष्ट हो जाती है तो उसका ठीकरा ‘आजकल की पीढ़ी’ जैसे जुमलों पर फोड़ा जाता है। जबकि सूखी फ़सल का कारण कहीं न कहीं हमारी (माता-पिता की) ही ‘अवहेलना’ है।
बहरहाल अगली बार यदि कोई तुम्हें मम्माज़ गर्ल कहकर चिढ़ाए तो बेटा! उसे कहना कि हमारी मम्मी हमारी बातंे सुनने के लिए और हमारे लिए समय निकालती हैं। वे हमें पूरा समय देती हैं। वे हमारी परवाह करती हैं। इसलिए हमें मम्माज़ गर्ल होने पर गर्व है।