मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी
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बेफिजूल ज़ाहिर हो जाना गवारा नहीं हमको,
गोया दिल के जज़्बात हम यूं ही दबा रखते हैं।
मेरी ख़ामोशी को मेरी कमज़ोरी मत समझना,
किसी रोज़ बतायेंगे, कि हम भी ज़ुबां रखते हैं।
आंधियों के मुक़ाबिल वो उजाले परखने को,
सिरहाने इन चरागों के हम तेज़ हवा रखते हैं।
वो इक चांद लेकर शहर भर में इतराता रहा,
और हम है कि सूरज को पहलू में छुपा रखते हैं।
उम्मीद नहीं कि कोई आएगा मेरे आशियाने में,
ख़ैर-मकदम में खुदी की, हम इसको सजा रखते हैं।
रियाज़तों का इल्म नहीं मुझको तो क्या हुआ,
हम अपनी पारसाई इस ज़माने से जुदा रखते हैं।
कोई काफ़िर समझती हैं ये दुनिया 'रोशन',
अब किसको बताएं कि हम भी ख़ुदा रखते हैं।
