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माँ, माँ होती है --

माँ, माँ होती है --

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मेरा रोम-रोम करे व्यक्त आभार
माँ का कोई दूजा नहीं है आधार ।

माँ आखिर माँ होती है
हमारे लिए ही जागती 
हमारे लिए ही सोती है 
कलेजे के टुकड़े को अपने
लगा के सीने से रखती है
आफत आये कोई हम पर तो 
स्वयं ढाल बन खड़ी होती है ।

आँखे नम हुई नहीं कि हमारी
झरने आँसुओ के लगती है बहाने
होती तकलीफ गर हम को तो
माँ बदहवास सी हो जाती है।

पिटना दूर की बात है
कोई छू भी दे तो
उसके सीने पर ही 
चलती जैसे कुल्हाड़ी 
चोट हमको आये तो
कमजोर माँ भी दहाड़ देती है ।

हर एक गलती पर अक्सर वह
फेर देती हाथ प्यार से सर पर हमारे 
समझाती दुलार कर, डांटती भी है
भला हो हमारा जिसमें
काम हर वहीं करती है
आँचल में छुपा हमको सो जाती है
ज्यादा प्यार में भी माँ रो जाती है ।

दिए जख्म दुनिया के हृदय में छुपा
हमें उस ताप से सदा दूर रखती है 
बुरी नजर से बचा कर चलती है
आँखों से ओझल कभी नहीं करती है ।

मेरे बार बार करवटें लेने से भी
वह परेशान होती है
गुस्सा होने पर भी वह
हाथ पैरों में आके तेल मलती है ।

किन शब्दों में करूँ मैं बखान उसका
ब्रह्माण्ड में सानी नहीं है जिसका.....।।

 


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