माँ को जोंक ने काटा !
माँ को जोंक ने काटा !
माँ हर तीसरे दिन मेरा सर धोतीं और गरी का तेल लगा चोटी बाँधतीं । सर धोने तक तो ठीक पर , तेल!
"माँ !!!! कितना खिंचता है।
माँ !!!! बाल टूट रहे हैं ।
मुझे नहीं लगवाना।
अच्छा ! बस टिक-टिक कर दो ,
रगड़ो मत ! "
माँ तेल लगाने क्या बैठतीं , मेरी आफत आ जाती । पर माँ भी बहुत सयानी थीं , जब भी मेरे बालों में तेल लगातीं कोई किस्सा कहने लगतीं, इस बार भी उन्होनें यही किया , मेरे बालों में तेल रगड़ना शुरू ही किया था कि झट से बोलीं ," अरे उस दिन का किस्सा कहूँ जिस दिन मुझे जोंक ने काटा " मैं हक्की बक्की माँ से बोली,"
"हैं ! ये जोंक क्या होती है ?"
एक तरह का कीड़ा है , पानी में रहती है, काली मटमैली रंग की लिजलिजी-सी,दो मुँह होते है उसके ! बताते बताते माँ की देह गिनगिनाने लगीं। पर किस्सा तो अब चल पड़ा था,सो मैंने बड़ी-बड़ी आँखे खोलकर पूछा,"अच्छा और उसके दाँत ,"
बहुत पैने होते होंगे न?
"हाँ ! बहुत पैने !"
"माँ जोंक कितनी बड़ी होती है "
माँ ने अपनी तर्जनी उंगली दिखाते हुए कहा"इतनी बड़ी"।
"हे राम ! इत्ती बड़ी , पर माँ ,जोंक ने तुम्हें क्यों काटा ?"
"अरे ! बेरन लगाने गयी थी न, बस वहीं काट लिया,,, जोंक काटती नहीं ,,,खून पीती है खून ,,,"
अब तो जिज्ञासा के मारे,,, मैं जलने लगी !
मैंने माँ से कहा, "माँ ! शुरू से सुनाओ न ! माँ मुँह दबाकर हँसने लगीं फिर बोलीं अच्छा ! तो सुन …
कुछ साल पहले की बात है मैं तब गांव में रहती थी और तेरे पिता शहर में नौकरी करने आये थे ,, बारिश के दिनों में धान बोया जाता है ,,, वैसे तो धान बोने के लिए हल चलाते-चलाते धान छिटक-छिटक कर खेत में बो दिया जाता है ,,जब उनमें पौध निकल आती है तो उन्हें वहां से उखाड़ लिया जाता है क्योंकि सभी पौध के बीच कोई निश्चित माप नहीं होता , मतलब कई पौध तो पास-पास होते हैं और कई पौध बहुत दूर,,, धान के पौधों में उचित दूरी होना बहुत जरूरी है जिससे हर पौध अच्छी तरह बढ़े और धान की फसल स्वस्थ हो !"
माँ मेरे बालों में तेल रगड़ते हुए बोलीं , मैं भी चुपचाप उन्हें सुनती जा रही थी , माँ अब बालों में कंघी करने लगीं तो मैं बोली "माँ ! फिर तुम्हें जोंक ने कैसे काटा ? "
माँ ने आगे कहना शुरू किया ...
"धान के पौध को थोड़ा बड़े होने के बाद जड़ समेत उखाड़ लिया जाता है उसके बाद उन्हें थोड़ी-थोड़ी दूर पर फिर से रोपा जाता है,धान के पौधों की रोपाई को ही 'बेरन-लगाना' कहते हैं ,,मैं भी एक दिन बेरन लगाने गई, खेत में पिंडलियों तक पानी भरा था, धान की फसल को खूब पानी चाहिए होता है, खेत का पानी गाढ़ा मटमैला था, मैं झुक कर बेरन लगाने लगी , कि अचानक पैर में कांटा चुभने का अहसास हुआ, मैंने अपना पैर हिला कर दूसरी जगह रख लिया लेकिन यह चुभन का अहसास बढ़ता ही जा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे पैर में नुकीला सा तीर माँस को बेधता ही चला जा रहा हो,,, अब बर्दाश्त नहीं हुआ मैं कराहने लगी धीरे-धीरे मेरी कराहट भी बढ़ने लगी अब मैं जोर से चिल्लाने लगी,,, मेरी चिल्लाहट सुन खेत में काम कर रहे बाकी लोग बोले ,, ओह्ह लगता है बहु को जोंक चिपट गयी है । सबने मुझे सहारा देकर खेत से बाहर निकाला मेरे पांव पर काली मोटी सी जोंक बुरी तरह चिपटी हुई थी,
घर से नमक मंगवाया गया और जोंक पर छिड़का गया ,,, थोड़ी देर में जोंक मर गयी और उसे मेरे पांव से अलग किया तो पता चला पाँव बुरी तरह जख्मी था,,, मैं तो बुरी तरह रो रही थी,,, पर सब समझाने लगे,,
बिटिया ! ऐसे ही धान थोड़े ही बढ़ जाता है , बहुत कष्ट सहना पड़ता है मुझे सब अपने पांव दिखाने लगे सब के पांव में जोंक के काटे के भूरे काले निशान थे । बेरन लगाते हुए जोंक द्वारा काटा जाना एक आम बात थी । पर उस कष्ट का निवारण न था,घाव वाले पाँव लेकर फिर खेत में उतरना पड़ता, कभी कभी वही घाव बुरी तरह सड़ जाता, पर बेरन लग के रहता ।"
माँ अपना किस्सा कह ही रहीं थीं कि मुझे याद आया कैसे माँ हमारी थालियों में बचा भात अपनी थाली में सज़ा कहतीं ,"बड़ी मेहनत लगती है धान उगाने में , ऐसे बर्बाद हो नाली में नहीं जाना चाहिये ,,,!
माँ सच कहती हैं धान उगाने में कितना कष्ट सहन करना पड़ता है ,,, दूसरी ओर मैं कितना भात बर्बाद कर देती हूँ । मेरी आँखों मे आँसू आ गए मैं माँ के पाँव में बने भूरे काले निशानों को सहलाते हुए बोली ," माँ अब से मैं उतना ही भात लूँगी जितना खा सकूँ ।
माँ मुस्कुराने लगीं मेरी ही चोटी से मेरी नाक पर गुदगुदी करने लगीं , माँ का प्यार करना मुझे अच्छा लग रहा था मैंने माँ को गले लगा लिया ।
