न जाने क्यों उन्हें आज मेरी इबादत पे कुछ शक सा है जिन्हें पहले मेरी वफ़ा पे हुआ करता था नाज़ उनकी एक हँसी से मिट जाती थी दिल की तन्हाइयां आज मेरी तन्हाइयों को उनके आंसू भी नसीब नहीं कभी जिनके तसव्वुर में रहता था सिर्फ़ मेरा ख़्याल न जाने क्यों आजकल गैरों में ढूंढते है परछाई मेरी जिन्होंने मेरा हर लम्हा रंग दिया था अपने प्यार के रंगों से न जाने क्यों आजकल मुझे अंधेरे से दिल लगाने की जिद करते है न जाने क्यों उनके जुबाँ से मेरे लिए "बेवफा" का लफ़्ज़ निकल गया तबसे मेरी जिंदगी भी मुझसे बेवफाई करने लगी है तुम्हारे तसव्वुर के बिना दिल को राहत नही मिलती.. क्या करे इस दिल को, इसे तुम्हारे सिवा किसी की चाहत नही जंचती .. दिल तो इस कदर मचलता है, के तेरे होंठ के सिवा इसे राहत नहीं मिलती