कुछ मंजिलों की बात थी
कुछ मंजिलों की बात थी
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कुछ व्यस्त सी थी जिन्दगी, कुछ सादगी थी मोहती
कुछ मन में भरी थी उलझनें, कुछ सुलझीं हुईं थीं मुश्किलें।
कुछ भूल आया पिछले किनारे, कुछ अगले सहारे बचा लिया
कुछ कहा होगा किसी समय, कुछ पछतावे के सहारे गुजर रहा।
कुछ धुंधले पड़े थे रास्ते, कुछ मंजिलों की बात थी
कुछ देख के अनजान बनना, कुछ बनने के लिये अनजान था।
