खूनी वर्दी
खूनी वर्दी
कहते हैं कि कानून अंधा होता है । कहने का मतलब है कि जो मजिस्ट्रेट या जज फैसला करता है वह निष्पक्ष होता है । उसे कुछ दिखाई नहीं देता है । उसे तो दो पक्ष बताते हैं सब कुछ। उसे कुछ दिखाई नहीं देता है । एक पक्ष कहता है कि दिन है तो दूसरा पक्ष कहता है कि दिन नहीं है । रात हो सकती है , सवेरा हो सकता है या शाम हो सकती है । मगर दिन नहीं है । चूंकि मजिस्ट्रेट या जज की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है तो फिर दोनों में से किस की बात सही मानी जाये ? दोनों पक्ष जो बात कह रहे हैं वह सच है या नहीं , यह भी पता नहीं । इसलिए पहली शर्त तो यह ईजाद हुई कि अदालत में जो बातें कही जायेंगी वे एक शपथपत्र पर कही जायेंगी । शपथ पत्र पर कही गई बातें सही मानी जाती हैं बशर्ते कि द्वितीय पक्ष उन तथ्यों को ग़लत साबित ना कर दे ।
दोनों ही पक्ष शपथ पत्र पर अपनी बात कह रहे हैं तो मजिस्ट्रेट क्या करे ? फिर दोनों पक्षों को कहा जाता है कि वे अपने कथन को सही साबित करे । इसके लिए एक एजेंसी चाहिए जो प्राथमिक रूप से उसकी जांच करे और रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दे । दोनों पक्ष गवाहों और दस्तावेजों के माध्यम से अपनी बात को सही साबित करने का प्रयास भी करते हैं । उन समस्त दस्तावेजों , गवाहों व समस्त तथ्यों के आधार पर मजिस्ट्रेट अपना निर्णय सुनाता है । मजिस्ट्रेट का यह निर्णय केवल साक्ष्यों पर ही आधारित होना चाहिए , ऐसी अपेक्षा की जाती है । इसीलिए कहते हैं कि कानून अंधा होता है ।
अब आते हैं दूसरी बात पर । सब कहते हैं कि कानून के हाथ लंबे होते हैं । कभी नजर भी आते हैं लंबे हाथ तो कभी बिल्कुल भी दिखाई नहीं देते हैं । वास्तव में कानून के हाथ तो लंबे ही होते हैं मगर रसूख वाले लोग इन हाथों को छोटा कर देते हैं । ये हाथ होते हैं पुलिस के रूप में । कानून के लिए हाथों का काम पुलिस करती है । वही मुकदमा दर्ज करती है , गिरफ्तारी करती है और जांच करके कोर्ट में चालान पेश करती है । कमजोर चालान और गवाहों के पलट जाने से अपराधी बरी हो जाते हैं । वहीं मजबूत चालान और सशक्त गवाही से बड़ा से बड़ा अपराधी भी सलाखों के अंदर पहुंच जाता है ।
ये कहानी एक ऐसे शख्स की है जो खाकी वर्दी में घोर अपराध कर रहा था । ऐसे ऐसे घिनौने अपराध जिन्हें सुनकर रूह कांप जाती है । ऐसे लोगों ने ही खाकी वर्दी पर खून के धब्बे लगा दिए हैं और जनता की निगाह में एक देशभक्ति वाली खाकी वर्दी "खूनी वर्दी" लगने लगती है ।
अतुल एक सब इंस्पेक्टर था । पुलिस की सीधी भर्ती परीक्षा के तहत उसका चयन हुआ था । बुद्धिमान था इसलिए प्रथम प्रयास में ही उसका चयन हो गया था । सारे घरवाले बहुत खुश हुये थे उसके चयन पर । पुलिस में थानेदार बनना बहुत बड़ी बात होती है । थानेदार के हाथ में पिस्तौल थमा दी जाती है जो अपराधियों के विरूद्ध प्रयोग में लेने के लिए होती है । मगर कुछ लोग इस पिस्तौल को निर्दष लोगों पर भी आजमा लेते हैं । पिस्तौल ये नहीं देखती है कि उसके सामने अपराधी है या निर्दोष । वह तो जब चलती है तो किसी की जान लेकर ही जाती है ।
प्रशिक्षण के दरमियान यह बात बहुत अच्छे से समझाई गई थी कि यह पिस्तौल आत्म रक्षा के लिए है ना कि हमला करने के लिए । और यह भी समझाया गया कि गोली चलाने से पहले सामने वाले को सावधान करना , उसे चेतावनी देना भी आवश्यक है । यदि फिर भी गोली चलानी पड़े तो ही चलानी चाहिए ।
प्रशिक्षण के अन्तर्गत सभी जरूरी कानूनों की जानकारी दी गई । प्रक्रिया को समझाया गया । सेवा नियमों को बताया गया और अपना कर्तव्य भी समझाया गया । सभी प्रशिक्षणार्थियों ने लगन पूर्वक प्रशिक्षण संपन्न किया । विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की गई जिनमें अतुल सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु सिद्ध हुआ । एक बार फिर से अतुल का लोहा सबको मानना पड़ा ।
अतुल एक सामान्य परिवार से आता था । गरीबी में बचपन गुजरा था । दाने दाने को मोहताज थे वे लोग । ऐसी अवस्था में परिवार की उम्मीद अतुल बन गया था । अतुल ही नहीं पूरे परिवार की हैसियत ही बदल गई थी । जो लोग उनको कभी घास नहीं डालते थे , वे भी अब नमस्कार करने लगे थे । वर्दी का रौब होता ही ऐसा है । परिवार की सामाजिक स्थिति बदल गई थी ।
क्रमशः
