जो अपने पास है, वह भी बहुत खास है
जो अपने पास है, वह भी बहुत खास है


छुक-छुक छुक-छुक चलती रेल गाड़ी,
कभी यहाँ तो कभी वहां है, चलती रेल गाड़ी !
दादा ji के यहाँ भी जाती, नाना ji के यहाँ भी जाती,
छुक-छुक छुक-छुक चलती रेल गाड़ी !
आज तो दीपू बना था रेल गाड़ी का इंजन और सोनु ,चिटु और बिटु बने थे---- इसके डिब्बे सारे बच्चे एक दूसरे के पीछे, एक दूसरे के कपड़े पकड़ते हुए रेल गाड़ी का खेल खेलते थे कभी सोनू इंजन बनता तो कभी चिटू ऐसे करते करते सभी बच्चे इंजन बनने का मजा लेते। लेकिन इनमें से एक बच्चा राजू जो हमेशा गार्ड बनता था, और उन्हे रोकने के लिए लाल झड़ी व चलने के लिए हरी झड़ी दिखाया करता था, वह बस साइड में खड़ा होकर उनके खेल को देखता और उस खेल का हिस्सा बनता था।और वहीं पास के मकान में मानव रहता था वह बहुत दिनों से इन बच्चो का यह खेल देख रहा था वह देखता कि कभी कोई बच्चा इंजन बना है, तो कभी कोई बच्चा , सभी बच्चे इंजन बनने का मजा भी लेते और डिब्बे बनने का भी बस एक ही बच्चा था जो रोज गार्ड बनता था। यह बात मानव को समझ नहीं आई।
फिर अगले दिन जब वह सारे बच्चे रेल गाड़ी का खेल, खेल रहे थे तब भी वही बच्चा गार्ड बना था ,अब तो मानव से रहा नहीं गया मानव उन बच्चों के पास गया उनका खेल देखने लगा और जैसे ही उन बच्चों ने अपना खेल खत्म किया तो मानव उस गार्ड बच्चे के पास गया और उससे उसका नाम पूछा कि आपका नाम क्या है? उसने कहा 'राजू '।
तब मानव ने पूछ ही लिया कि राजू---- आप रोज इन बच्चों के साथ यह रेल गाड़ी का खेल खेलते हो। मैं आपको देखता हूँ पर मुझे यह समझ नहीं आता कि राजू आप ही रोज गार्ड क्यो बनते हो! क्या आपको इंजन और डिब्बा बनना अच्छा नहीं लगता है। या ये बच्चे आपको बनने नहीं देते।
तब राजू ने बहुत ही मासूमियत से कहा'' भैया ऐसा नहीं है मुझे भी कभी इंजन तो कभी
डिब्बा बनने का मन करता है भैया। वह ऐसा होता था न की जब पहले हम खेल शुरू करते थे तो हमें यह सोचने में बहुत समय लग जाता था की कौन इंजन बनेगा कौन डिब्बा बनेगा और कौन गार्ड बनेगा। ऐसा तय करते करते कितनी ही बार तो खेल का समय ही निकल जाता। तब हम खेल भी नहीं पाते थे।
तब एक दिन मैंने सोचा की क्यूँ ना मैं ही हमेशा गार्ड बन जाऊं ताकि हम खेल को सही समय पर शुरू कर दे और खेल को ज्यादा देर तक खेल भी पायें और भैया आपको पता है गार्ड बनना कितना अच्छा होता है। क्योंकि गाड़ी को कण्ट्रोल करने की सारी ताकत तो गार्ड के पास ही होती है। गार्ड ही तो होता है जो रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर आगे जाने देता है और लाल झंडी दिखाकर गाड़ी को रोक भी सकता है, इसीलिए मैं गार्ड बनता हूं और हम सब खेल भी पाते हैं और मज़े भी कर लेते हैं राजू की बातें सुनने के बाद मानव ने सोचा कि राजू की इन बातों में कितनी बड़ी बात छुपी हुई है। कितना बड़ा खुशियों का खजाना छुपा हुआ है। खेलते समय राजू का मन भी कभी इंजन या कभी डिब्बे बनकर खेलने का करता था पर फिर गार्ड बनने के लिए कोई भी बच्चा तैयार नहीं होता था। और वे सब खेल नहीं पाते थे इसलिए उस खेल में राजू हमेशा गार्ड बनता था पर फिर भी वह खुश रहता था क्योंकी जो पार्ट उसे उस खेल में मिला था वह उसी में खुश रहता था।
तब मानव ने सोचा, “ सब सही कहते है की जो भी हमारे पास है वह कितना खास है। उनमें भी तो खुशियां हैं बस जरूरत होती है हमें उसमें अपनी खुशी ढूंढने की जो भी हमारे पास होता है यानी कि जो भी हमें प्राप्त है वह अपने आप में पर्याप्त है जरूरत होती है हमें उसको समझने की उसको महसूस करने की इसीलिए तो कहते हैं!
''दूसरों को देख कर मन नहीं भटकाना है, जो मिला है उसी से आगे बढ़ते जाना है और सफलता को पाना है'।