जंगल चला शहर होने -13
जंगल चला शहर होने -13
इस घटना से राजा शेर ने भी सबक लिया। उन्होंने महारानी शेरनी से कहा कि हमें धन दौलत घर में नहीं रखना चाहिए था।
अब आगे के लिए राजा साहब ने मांद महल के पिछवाड़े ही एक पक्की बंकरनुमा सुरंग बनवा कर उसी में ख़ज़ाने के लिए एक विशालकाय तिजोरी बनवा डाली।
वहां पर कुछ प्रशिक्षित गार्ड गोरिल्ला भी तैनात कर दिए गए।
लेकिन पुराने जमाने के एक मशहूर कवि ने कहा है -
"रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डार
जहां काम आवै सुई, कहा करै तलवार"
इसका मतलब ये है कि बड़ी - बड़ी बातों के सामने छोटी बातों को नज़र- अंदाज़ नहीं करना चाहिए, कई बार जो काम तलवार से नहीं हो पाते वो सुई से हो जाते हैं।
तो ऐसा ही हुआ!
इस मज़बूत पुख्ता तिजोरी वाली सुरंग में कारीगरों की भूल से एक छोटा सा सूराख कहीं रह गया। नन्हे से इस छेद पर किसी का ध्
यान नहीं गया।
काम ख़त्म हो गया। राजा साहब का सारा ख़ज़ाना इस नई तिजोरी में रखवा दिया गया। सारा काम गुपचुप तरीके से लोमड़ी और खरगोश ने एडवाइजर मिट्ठू पोपट की देखरेख में करवाया। बेहद भरोसे मंद गार्ड भी तैनात कर दिए गए।
रानी साहिबा को ये मलाल था कि उनकी चोरी गई दौलत अब तक नहीं मिली थी। लेकिन समय समय पर मिट्ठू पोपट उन्हें ये कह कर सांत्वना देता रहता था कि दौलत जैसे आती है वैसे ही जाती है।
रानी साहिबा इस मुहावरे का अर्थ तो नहीं जानती थीं लेकिन मन में यही सोच कर अपने को तसल्ली दे लेती थीं कि तब तो जैसे गई है वैसे ही वापस भी आयेगी। वो मन ही मन फ़िर से कोई ऐसी तरकीब सोचती रहती थीं जिससे सभी मित्रों को फिर से आमंत्रित करें और उनसे धन कमाने की चेष्टा करें।
दुनिया का दस्तूर है कि यहां सोचने से हर बात का हल मिल ही जाता है।