"जीने की राह"
"जीने की राह"
ज्ञान के माता- पिता प्रश्न -उत्तर होते हैं। इनमें भी प्रश्न पिता और उत्तर माता है। जीवन में प्रश्न -उत्तर जितने अधिक और सुलझे हुए होंगे, ज्ञान उतना ही आसानी से और परिपक्व रूप में आएगा। चूंकि यह शिक्षा का दौर है तो अर्जित करना ही चाहिए, लेकिन अपने बच्चों को यह भी समझाएं कि इस समय विचारों की प्रधानता होती है और विचारों की बहुत अधिक जुगाली न की जाए। आवश्यकता से अधिक उठने वाले विचार यदि समय पर न रोके गए तो खतरनाक हो जाते हैं। उदासी और डिप्रेशन का कारण बन जाते हैं। इसलिए कई बार पढ़े -लिखे लोग उदास पाए जाते हैं, अवसाद में डूबे दिखते हैं। कुछ समय के लिए विचारों को रोकना, जीवन में एक शून्यता लाना योग से संभव है। पढ़े-लिखे, ज्ञानियों के साथ एक दिक्कत यह भी हो जाती है कि वे सदैव २४ घंटे ही पढ़े -लिखे बने रहते हैं जबकि यदि शांति प्राप्त करनी हो तो कुछ समय के लिए ज्ञान शून्य भी होना पड़ेगा। ज्ञान के अर्जीण को रोका नहीं गया तो हम कोई पुस्तक पढ़कर भी पुस्तक नहीं पढ़ेंगे, उसमें खुद को पढ़ेंगे। यही से हमारा 'मैं ' हावी हो जाता है ज्ञानियों को अहंकार होता ही इसलिए है कि मैंने पढ़ा है, मैं अधिक जानता हूं। फिर ये ही 'मैं' उन्हें उदासी में पटक देता है। तो इस 'मैं ' को गिराने के लिए शून्य में उतरना पड़ेगा और शून्य में उतरने के लिए योग ही एकमात्र मार्ग है।
