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Charumati Ramdas

Children Stories

4  

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जब डैडी छोटे थे - 13

जब डैडी छोटे थे - 13

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जब डैडी छोटे थे तो उनके बहुत सारे साथी थे। वे हर रोज़ एक साथ खेलते। कभी-कभी झगड़ा भी करते, मार-पीट भी करते। बाद में समझौता कर लेते। सिर्फ एक बच्चा ऐसा था जो कभी किसी से नहीं लड़ता था। उसका नाम था लेन्या नज़ारोव। ये औसत ऊँचाई का ताक़तवर बच्चा था। उसके पिता सोवियत- मार्शल बुद्योन्नी की फ़ौजी टुकड़ी में रह चुके थे। लेन्या को मार्शल सिम्योन मिखाइलोविच बुद्योन्नी के बारे में बतलाना बहुत अच्छा लगता था। वह वर्णन करता कि कैसे उन्होंने श्वेत-गार्डों को हराया और कैसे वह किसी से भी डरते नहीं थे- न किसी जनरल से, न कमाण्डर से, न बन्दूक की गोली से, न तलवार से। लेन्या को मालूम था कि बुद्योन्नी का घोड़ा कैसा था, उसकी तलवार कैसी थी। और, वह हमेशा कहता-

 “मैं बड़ा होकर बुद्योन्नी जैसा बनूँगा !”

छोटे डैडी को लेन्या के घर जाना बहुत अच्छा लगता था। वहाँ हमेशा ख़ुशी भरा वातावरण होता था। लेन्या को घर में कई काम करने होते थे- वो ब्रेड लाने के लिए भागता, और लकड़ियाँ काटता, और फ़र्श पर झाडू मारता, और बर्तन भी धोता। छोटे डैडी देखते थे कि लेन्या को घर में सब लोग प्यार करते हैं। लेन्या के डैडी अक्सर उससे यूँ बात करते, जैसे बड़े आदमी से कर रहे हों-

 “लेन्या, सण्डे को किस-किस को घर पे बुलाएँगे ?”

 “लेन्या, हमारी लकड़ियों की क्या पोज़िशन है, क्या बसंत तक चल जाएँगी ?”

और लेन्या के पास सभी सवालों के जवाब होते थे।

अगर लेन्या के पास कोई मेहमान आता, तो उसे फ़ौरन डाईनिंग-टेबल पर बिठाकर उसकी आवभगत की जाती। फिर सब लोग खेलते। छोटे डैडी को यही अफ़सोस रहता कि उनके घर में ऐसा नहीं है। उनकी लेन्या से बहुत दोस्ती थी। वो सिर्फ एक बात नहीं समझ पाते थे- लेन्या कभी भी मार-पीट नहीं करता था। छोटे डैडी उससे अक्सर पूछते-

“तू मार-पीट क्यों नहीं करता ? डरता है ?”

लेन्या का हमेशा एक ही जवाब होता-

 “मैं अपनों से ही क्यों झगड़ा करूँ ?”

एक बार सारे बच्चे इकट्ठे होकर बहस करने लगे कि उनमें सबसे ज़्यादा ताक़तवर कौन है। एक लड़का बोला-

 “मैं बड़े लड़कों से नहीं डरता, और तुम सबको उठाकर बिल्ली के पिल्लों जैसे फेंक दूँगा। मेरे मसल्स देखो – व्वो !”

दूसरे ने कहा-

 “मैं इत्ता ज़्यादा ताक़तवर हूँ, कि मुझे ख़ुद को भी हैरानी होती है। ख़ास तौर से बायाँ हाथ। एकदम फ़ौलाद जैसा है।”

तीसरा बोला-

 “वैसे तो मैं ताक़तवर नहीं हूँ, मुझे गुस्सा दिलाना पड़ता है। और, जो गुस्सा आ गया – तो फिर मेरे सामने न आना ! तब मैं अपने होश में नहीं रहता।”

छोटे डैडी ने कहा-

 “मैं बहस नहीं करूँगा। मुझे वैसे भी मालूम है, कि मैं तुम सबसे ज़्यादा ताक़तवर हूँ।”

सभी लोग डींगें मार रहे थे। मगर लेन्या नज़ारोव सिर्फ उनकी बातें सुन रहा था और ख़ामोश था। तब एक लड़के ने कहा-

 “चलो, लड़ाई करते हैं। जो सबको हरा देगा वो सबसे ताक़तवर होगा।”

लड़के मान गए। लड़ाई शुरू हो गई। सब लड़के लेन्या नज़ारोव के साथ लड़ाई करना चाहते थे- वो कभी भी मार-पीट नहीं करता था, इसलिए सब सोचते थे कि वह कमज़ोर है।

शुरू में तो लेन्या का मन नहीं था, मगर जब एक लड़के ने उसे अपने बाएँ फ़ौलादी हाथ से पकड़ा, तो लेन्या को गुस्सा आ गया और उसने फ़ौरन उस लड़के को अपने दोनों पंजों पर उठा लिया। फिर उसने उस लड़के को ज़मीन पर फेंक दिया जो सबको बिल्ली के पिल्लों जैसा उठाकर फेंक देना चाहता था। उसने बड़ी तेज़ी से उसे भी हरा दिया, जिसे गुस्सा दिलाना पड़ता था। ये सही है कि वह, पीठ के बल गिरे हुए चिल्ला रहा था कि उसे अच्छी तरह से गुस्सा नहीं दिलाया गया है। मगर लेन्या ने किसी बात का इंतज़ार नहीं किया और आराम से छोटे डैडी को अपने पंजों पर उठा लिया। दोस्ती की ख़ातिर वह ऐसा दिखा रहा था जैसे उन्हें उठाना सबसे ज़्यादा कठिन था।

तब सबने कहा-

 “लेन्का, तू सबसे ज़्यादा ताक़तवर है ! तू चुप क्यों था ?”

लेन्या हँस पड़ा और बोला-

 “मैं डींगें क्यों मारूँ ?”

लड़कों ने कोई जवाब नहीं दिया। मगर अब उन्होंने भी अपनी ताक़त के बारे में डींग मारना छोड़ दिया। तब से छोटे डैडी समझ गए कि डींग मारने वाला ही ताक़तवर नहीं होता। और वे अपने दोस्त लेन्या नज़ारोव से और भी प्यार करने लगे।

कई साल बीत गए। छोटे डैडी बड़े हो गए। वो दूसरे शहर चले गए। उन्हें नहीं मालूम कि अब लेन्या कहाँ है। शायद, वह एक अच्छा इन्सान बन गया हो।  


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