जादू की झप्पी
जादू की झप्पी
हम सब कभी न कभी कुछ ऐसा जरूर महसूस करते हैं, जिससे हमारी जिंदगी में ख़ुशी और उम्मीद बनी रहती है। ऐसा कुछ दिनों पहले रौनक के साथ हुआ। वह रोज की तरह अपने दफ्तर से वापिस लौट रहा था।
कुछ देर तक वह बस स्थानक पर रुका रहा ताकि वह बस में आराम से अपने घर लौट सके। लेकिन जब बस थोड़ी देर तक नहीं आयी तब उसने पैदल चलने का फैसला किया। कुछ दूर चलने के बाद उसे एक ऑटो दिखी। उसने उसे रोका और अपने घर शास्त्री नगर चलने को कहा। बहुत रात हो चुकी थी। मगर दिक्कत की बात यह थी की उसे आज याद नहीं था की अगले दिन उसकी सबसे अच्छी मित्र निकिता का जन्मदिन था।
ताज्जुब की बात यह भी थी के जिस दिन से उसकी दोस्ती निकिता से हुई थी तब से अब तक वह कभी निकिता का जन्मदिन नहीं भूला था। परन्तु शायद इस बार वह ये गलती करने वाला था। कुछ देर के बाद वह अपने घर पहुंच गया और खाना खा कर सो गया।
अगले दिन सुबह वह रोज की तरह अपने दफ्तर चला गया। दफ्तर का काम करते - करते कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला। जब वो शाम को कुछ हल्का - फुल्का खाने के लिए दफ्तर से निकला तब उसे अचानक से याद आया की उस दिन निकिता का जन्मदिन था। वह हरबरा कर अपने फ़ोन को जेब से निकाला और निकिता को फ़ोन लगाने लगा।
जब निकिता ने अपने फ़ोन पर रौनक का नाम देखा तो वह समझ गयी की रौनक को उसका जन्मदिन देरी से याद आया।
उसने फ़ोन उठाया और कहा के " आखिर याद आ ही गया । "
रौनक को बेहद शर्मिंदगी का अहसाह हो रहा था।
लेकिन उसने हिम्मत करके कहा के "अब रोज के काम काज और दफ्तर की वजह से बहुत कुछ भूलने लगा हूँ"।
इस बात पर निकिता हंस कर बोली की " कोई बात नहीं अक्सर ऐसा होता है जब हम लोग अपने निजी जिंदगी में कुछ खो जाते हैं "।
कुछ देर उन्दोनो में बातें चलीं । कुछ बातें पुरानी थी और कुछ नयी भी ।
रविवार का दिन था। रौनक का डॉक्टर के पास जाने का वक़्त हो रहा था। करीब इग्यारह बज रहे थे। रोनक तैयार होकर डॉक्टर के पास जाने के लिए निकल ही रहा था के अचानक उसका फ़ोन बजा। उसने जब अपना फ़ोन देखा तो निकिता उसे फ़ोन कर रही थी। उसने फ़ोन उठाया।
निकिता ने जवाब दिया "आज मैं तुमसे मिलने आ रही हूँ। हर बार की तरह थोड़ी देर बातें करेंगे और अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ कहीं जाने का प्लान बनाएंगे। "
यह सुन कर रौनक ने कहा के " ठीक है। "
इतना कह कर उनकी बातें ख़त्म हो गयी और रौनक ने फ़ोन रखकर डॉक्टर के पास जाने के लिए निकल परा। उसने सोचा के निकिता को आने में दो घंटे लगेंगे लगभग, तब तक वह डॉक्टर से मिल कर वापिस चला आएगा।
डॉक्टर से मिलने के बाद रौनक कुछ परेशान सा हो गया था।
जब वह वापिस लौटकर अपने घर के पास पहुंचा तब उसने देखा के निकिता उसके घर के बहार खरी थी।
उसने जल्दी से दरवाज़ा खोला और निकिता से अंदर आने को कहा। उसके बाद उसने दरवाज़ा बंद कर दिया और अपनी डॉक्टर की फाइल मेज़ पर रख कर अंदर मुँह धोने चला गया। वापिस जब वो बाहर आया तब उसने देखा के निकिता के हाथ में उसकी फाइल थी और उसकी आँखें भी नम हो चुकी थी। तब रौनक को याद आया की जो बात वह निकिता से इतने दिन से छुपा रहा था वह बात आज उसे पता चल ही गयी। उसके पास कोई शब्द नहीं थे अपनी गलती को सुधारने के लिए और नाहीं उसके पास हिम्मत थी माफ़ी मांगने की।
निकिता ने उससे पूछा "तुमने मुझे क्यों नहीं बताया ? "
दरअसल रौनक को भूलने की बिमारी हो चुकी थी जिसकी वजह से वह अब धीरे - धीरे सब कुछ भूलने लगा था और डॉक्टर ने उसे कह दिया था के वह कुछ दिनों के बाद सब कुछ भूल जाएगा ।
उसका इरादा निकिता को दुःख पहुंचाने का नहीं था। लेकिन अब तो उसकी छूपि हुई बात उसके सबसे अच्छे मित्र को पता चल चुकी थी।
उसने हंसते हुए कहा के "पिछले बार की तरह इस बार भी मुझे माफ़ कर दो।"
उसके बाद रौनक ने अपनी नम आखों के साथ, मुस्कुराते हुए और थोड़ी लरखराती हुई आवाज़ में कहा के "वैसे भी तुम्हारी जादू की झप्पी, शायद मुझे ठीक करदे। "
यह सुन कर निकिता जोर से रोने लगी।
हमें भी शायद कभी - कभी कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनके साथ हम जीवन भर अपने सुख दुःख की बातें बिना किसी घबराहट या डर के कह सकते हैं। ऐसा कुछ रिश्ता निकिता और रौनक के बीच भी था, आखिर उनकी पच्चीस साल पुरानी दोस्ती जो थी , जो उन्हें बांधें राखी थी एक दुसरे से। वो दोनों अपने पैतालीस साल की उम्र में भी , एक दुसरे को किसी तरह का दुःख में नहीं देखना चाहते थे। शायद इसी लिए रौनक ने अपनी बात निकिता से छुपा कर रखी थी।
