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एक पथिक...✍️

Others

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इंतजार

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सुबह की गुनगुनी धूप के साथ मैंने अपने दिन की शुरुआत की। होटल के कमरे से निकल कर टहलते हुए मैं हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे पर बने बेंच पर बैठ गया। बड़ी देर तक मैं उफनती नदी को देखता रहा ऐसा लग रहा था कि जैसे नदी चिल्ला चिल्ला कर मुझसे कुछ कहना चाह रही है। बार बार उसके लहरों से उठने वाले पानी की छींटे मेरे चेहरे को भिगो कर जैसे मुझे कुछ सुनाना चाह रही थी। मैं अपने ख्यालों में खोया खोया नदी से बातें करने की कोशिश कर ही रहा था तभी मेरा ध्यान बगल में गया। मेरे बगल में आकर एक लड़का आकर बैठ गया। उसकी उम्र करीब 22 साल की होगी। 


बड़ी देर तक वो एकटक सामने नदी को निहारता रहा। फिर मुझसे बोला-" आपको पता है गंगा को क्यो गंगा कहा जाता है"। मुझे इसकी जानकारी नहीं थी मैंने असहमति में सर हिला दिया। उसने तपाक से हाथ बढ़ाया मेरा नाम सुयश है और आपका  ? 

मैं उस अजनबी के अचानक से बढ़ाये हाथ को देख के थोड़ा आश्चर्य में था लेकिन मैं शिष्टाचार के नाते हाथ मिलाया और अपना नाम बताया। " मेरा नाम सुमन है, हरिद्वार कुछ काम से आया हूँ सोचा नदी से कुछ बातें कर ली जाये" ओह क्या खूब बात कही आपने नदी से बातें-उसने थोड़ा हँसते हुए कहा, मैं यही कॉलेज में पढ़ता हूँ। कभी सुबह उठ नहीं पाता सोचा आज उठा जाये देखा जाये सुबह कितनी खूबसूरत होती है। फिर थोड़ा खामोश होकर बोला-किसी का इंतजार कर रहा हूँ वो अब तक आई नहीं, आप जिस जगह पर बैठे हैं न वो उसी की है।" ओह अच्छा माफ़ी चाहूँगा, मुझे नहीं पता था मैं कहीं और चला जाता हूँ।" मैं उठने लगा तभी उसने बोला, हाँ ये सही रहेगा। 


मैंने सोचा, कोई शिष्टाचार नहीं है इसके अंदर उठा दिया और माफ़ी तक नहीं मांगी जैसे ये सीट इसने हमेशा के लिए बुक करा ली है। और मैं उठ के बगल की सीट पर जा के बैठ गया। 

बड़ी देर के इंतजार के बाद भी कोई नहीं आया न वो लड़का वहां से हिला, एकटक सामने नदी को देखता रहा। कुछ देर बाद मेरे बगल में आकर एक अधेड़ उम्र के अंकल जी आकर बैठ गए, उन्होंने जैसे ही बगल वाली सीट पर देखा उस लड़के को, बोल पड़े-" ये पता नहीं कब तक ऐसे आके बैठा रहेगा, इसके माँ बाप भी इसे छोड़ ही चुके हैं ऐसे हालात में।" मैंने उनका मुँह देखा-आश्चर्य से मुझे देखते हुए वो बोले, अरे पागल है ये इसकी प्रेमिका थी नदी में कूद कर मर गई इसके सामने ही, ये भी कूदा था साथ लेकिन बच गया, तबसे रोज आकर बैठ जाता है और किसी को बैठने नहीं देता उस सीट पर। 


मैं ये सुन कर दुखी था। एक हताश निराश आँखें आज भी किसी का इंतजार कर रही थी और नदी शायद ये कहना चाह रही था कि लौट जाओ मैने बड़े प्यार से उसके हिस्से का प्यार आज भी हर किसी से सम्भाल के रखा है अपने पास।

 लौट आओ……

                                              


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