इंतज़ार...
इंतज़ार...
अचानक आंख खुली, मोबाइल में टाइम देखा, "अरे अभी तो सुबह के सिर्फ ५:00 ही बजे है, मानो नींद भी आज आंखों संग आंखमिचौली खेल रही हो।
सच कितना अजीब होता है, यह इंतज़ार, जिसे सोच आपका चित अती उत्साहित भी होता है तो कभी क्षणिक हतोत्साहित भी ।
सोच की नौका, मस्तिष्क रूपी समुद्र में हिलोरें खा ही रही थी, की डोर बेल बज गई।
लगता है दूधवाला आ गया है।
" बाबूजी आज बड़े खुश लग रहे, कोई आने वाला है क्या??" दूध वाले ने पूछा।
" अरे हां भाई!! आज बड़े लंबे इंतजार के बाद अन्नु जो आ रहीं है।"
"चलिए अच्छा है, बाबूजी, रिश्तेदारों के आने से, अब कुछ दिन आपका अकेलापन तो दूर होगा।" दूध वाले खुशी से कहा।
दूध को धीमी आंच पर उबलने के लिए रखा, तब तक कूड़े वाले ने भी घंटी बजा दी।
भाई आज गेट के आगे थोड़ा अच्छे से सफाई कर देना, और गली में डालने के लिए चूना तो लाए हो न।
"हां अंकल जी, आज तो पूरी गली चमचमा रही है, पूरी गली में कूड़े का कोई नाम-ओ-निशान नहीं मिलेगा, और चूना भी डलवा दिया है।"- कूड़े वाले ने उत्साह पूर्वक कहा।
मैंने भी उसे झट से 100 का एक नोट निकाल कर दे दिया, और संग धन्यवाद दिया।
आज तो अंजना खूब खुश हो जाएगी, गली और घर को इतना साफ देखकर।
इतने में, मेरे कदम स्वतः ही किचन कि तरफ तेज़ी से बढ़ गए।
"सक्सेना जी, अगर आंच हल्की होगी, तो दूध में उबाल देरी से आएगा, और अगर आप समय रहते पहुंच गए तो नुकसान भी नहीं होगा।"
मानो अंजना की बातें कानों में समय समय पर गूंज जाती।
कितने लंबे अंतराल बाद आज हम मिलेंगे, सोच हृदय में हर क्षण एक नई चेतना बिगुल बजा देती, मानो मेरे बूढ़े हाथ पैरों को तीव्र गति से कार्य करने का वेग मिल जाता।
घर की साफ सफाई कर, मैंने चाय की चुस्कियों के बीच, सोचा "कुछ भी तो नहीं बदला है अन्नू, घर की हर एक चीज वैसे ही है, जैसे तुम रख कर गई थी।"
तुम्हारी अलमारी, तुम्हारे नए खरीदें कपड़े, तुम्हारी फव्रेट गुर्गाबी, और नई खरीदी आरामदायक फ्लोटर्स, तुम्हारा श्रृंगार पटल, दुर्गा मां का सजा मन्दिर, और किचन, जिसे तुम अपना ताजमहल कहती हो, वह भी वैसे ही सेट है, जैसे तुमने शुरू से रखा था।
बस कमी है तो सिर्फ तुम्हारी...तुम्हारी पायल की खनक की,
गूंजती तुम्हारी बातों की, उस मुस्कुराहट की, जो दूसरों को मनोबल देती।
खेर, आज तो मुझे ,सांस लेने तक की फुरसत न थी, अंजना के आने की तैयारी जो करनी है।
गैस पर आलू चढ़ा, में स्नान करने चला गया। अब तौलिया साथ ही लेकर जाता हूं, और अपने कपड़े भी अलमारी से खुद ही निकाल लेता हूं। सच, यह लॉकडाउन ने नहीं, बल्कि अंजना ने मुझे ,कुछ ज़्यादा ही आत्मनिर्भर बना दिया।
नहाकर आया तो, घड़ी पर नजर गई, सब बातों के बीच सुबह के 9:00 बज चुके थे।
मैंने जल्दी जल्दी काशीफल काट छौंक दिया, और दूसरी ओर, आलू टमाटर की सब्जी बनाने रख दी।
फिर नमक अजवाइन का आटा गूथ, परात को थाली से ढक दिया, बूंदी का रायता भी अंजना को बहुत अच्छा लगता है, सो झट से तैयार कर लिया।
अंजना भी तो इतने उत्साह से न जाने क्या क्या बनाया करती थीं, जब में शनिवार, इतवार को लैंसडाउन से घर आता।
आज मुझे भी खाना बनाते वक़्त, शायद ऐसी ही ख़ुशी की अनुभूति हो रही है।
आज मैंने शायद पहेली बार, इतना सब, स्वादिष्ट व्यंजन एक साथ अंजना के लिए बनाया, अंजना की पसंद की मिठाई --मिल्ककेक, भी लेकर आया।
सारे व्यंजन बनकर तैयार थे, अब बस अंजना के आने का इंतज़ार मन के भीतर दस्तक दे रहा था। फिर में कमरे में तैयार होने चला गया।
"आज तो अन्नू मुझे देखती ही रह जाएगी" , उसका मेरे जन्मदिवस पर गिफ्ट किया, रेड ब्लैक शर्ट और ब्लैक ट्राउजर पहन मैंने, शीशे की तरफ, मुस्कुरा कर खुद से कहा।
सच ही कहा गया है, समय का पहिया गतिशील होता है, एक समय ही है, जो कभी किसी भी परिस्थिति में अचर, स्थिर नहीं रहता, सचलता और परिवर्तनशीलता समय की नियति है।
हमेशा तो अन्नू ही मेरे लिए कुछ न कुछ खरीदा करतीं, पर इस वर्ष मैंने अन्नु के लिए शॉपिंग की, एक प्यारी सी लाल साड़ी और श्रृंगार का सामान, खरीदा।
थोड़ी देर में डोर बेल बजी, मैंने दरवाजा खोला।
"प्रणाम पंडितजी, आप यथा समय पधारे है।" मैंने ब्राह्मण जन से कहा।
पंडितजी ने आसन ग्रहण किया, फिर कुश, तिल, जनेऊ, शहद, चंदन, रोली, मौली, धूप,
दीप, अक्षत, गंगाजल, कच्चा दूध, एकत्र कर, पूजा की तैयारी करने लगे।
"जजमान, चलिए, पूजन विधि आरंभ करें, सफेद चांदनी के पुष्प हाथों में ले, पत्नी को बुलावे।" सो मैंने हाथों में सफेद फूलो के समूह के बीच, एक सुंदर सुरख लाल गुलाब लिया और... तभी डोर बेल बजी।
"अरे आप आ गई। बिल्कुल सही समय पर आयी है। पूजन शुरू ही होने वाला था, आज तो सारे व्यंजन अंजना के पसंद के ही है।"
पूजन विधि संपन्न होने पर, भोजन को ३ भागों में बांट, तत्पश्चात् ब्रह्मभोज परोसा गया।
फिर अन्दर कमरे में रखी वह प्यारी सी लाल साड़ी संग श्रृंगार का सारा सामान लेकर बाहर आंगन में, पूजन स्थान पर मैंने रख दिया।
मेरी आंखें एक टक अन्नू को ही देख रही थी, आज भी अंजना के अक्षर आकृति पर विभा विद्यमान है, आज, प्रतिपदा पर, अपने घर आकर ,मानो वह भी बेहद खुश हो।
" खाना तो बहुत अच्छा बना है सक्सेना जी, सारे व्यंजन मेरी पसंद के है, और यह मिल्क केक तो मेरी पसंद की मिठाई है।"
लगा जैसे अंजना ने अपनी चिर उपस्थिति निमिष में पदस्थापित कर दी हो।
"ईश्वर आपकी पत्नी की आत्मा को शांति प्रदान करे, और वह पितृलोक से आपके समस्त परिवार पर अपनी असीम कृपा बनाए रखे।" अल्का जी, पंडिताइन ने मुझसे कहा।
में भरे मन से अल्का जी को प्रणाम कर, यथार्थ दान दक्षिणा व भेट देकर, गेट तक छोड़ आया।
फिर अन्दर आकर, अंजना की तस्वीर पर चंदन, रोली का तिलक कर, लाल गुलाब की माला पहनाई।
"अन्नु अगले वर्ष फिर तुम्हारा इंतज़ार रहेगा।" कह में कमरे से बाहर जाने के लिए मुड़ा ।
( बस इतनी सी है यह कहानी, एक पिता के चिर प्रतीक्षा और मनसिथित की अनगिनत सिलवटों से उभरी कहानी, बेटी की ज़ुबानी)
