Ritwika Chatterjee

Children Stories Others Children

4.8  

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हेमा मासी और हम चले पहाड़ों की ओर

हेमा मासी और हम चले पहाड़ों की ओर

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मेरा नाम रेखा है, मै 15 साल की हूं, और चक्रधरपूर में कांची गांव नाम के एक गांव में रहती हूं। यहां मेरे कुल मिलाकर चार जिगरी दोस्त है, जो है दिया और दीपक कपूर जो कि भाई बहन है, पंचम सिंह और वीर तिवारी। हम सब पक्के दोस्त हैं, हम एक साथ स्कूल जाते एक साथ वापस आते एक रोता तो सारे रो पड़ते और एक हंसता तो सारे हंसते।एक ऐसा ही दिन था, हम सब दोस्त मेरे आंगन में खेल रहे थे , तभी हेमा मासी ने हमको आवाज लगाई, और हमारा चेहरा उनको देखकर खिल उठा।

हेमा मासी दीया और दीपक की सगी मासी थी हमने बचपन से दिया और दीपक को हेमा मासी को इसी नाम से पुकारते हुए सना है और तब से हम भी उन्हें हेमा मासी ही बुलाते हैं।हेमा मासी ने आते ही हम सबको हाथ में चॉकलेट के डिब्बे दिए, जो कि वह शहर से लेकर आई थी। हमने और हेमा मासी में कुछ दिनों तक बहुत मजे़ किए, पर एक दिन दीया को खयाल आया कि हम सबको कहीं घूमने जाना चाहिए, तो हमने हमारे घरवालों से पूछा पर किसी ने हमारी बात नहीं मानी, तब ''हेमा मासी नेकहा, कि फिकर मत कीजिए जीजा जी मैं बच्चों को घुमाने ले कर जाऊंगी और सही सलामत वापस घर भी लाऊंगी, यह मेरा वादा है'' और क्या तब बड़ों को उन पर भरोसा करना ही पड़ा और हमें अनुमति दे दी कि हम घूमने जाएं । हेमा मासी ने पूछा कि ''तुम लोग कहां जाना चाहते हो''? और हमने कहा कि हमें पहाड़ों पर जाना है क्योंकि हम इससे पहले कभी पहाड़ों पर घुमने नहीं गए थे। तब हेमा मासी ने हमारे साथ हामी भरी।और अगले दिन हम चल पड़े पहाड़ों की ओर।हमारे यहां से पहाड़ जानेका रास्ता बहुत दूर है, इसलिए हमें गांव को पार करने में ही 1 दिन लग गया और जब हम पहाड़ों पर चल रहे थे तब रास्ते पर हमारी गाड़ी 1 टायर पंचर हो गया था।

तब हेमा मासी नेकहा कि बच्चों घबराने की कोई जरूरत नहीं है मैं टायर अभी बदल देती हूं, ऐसा कहकर उन्होंने टायर बदल दिया, और हम फिर से आराम से आगे की ओर बढ़ रहे थे। थोड़ी देर बाद सुबह हो गई और हमने देखा कि हम पहाड़ों पर पहुंच गए हैं चारों तरफ खुबसूरत नज़ारा था ठंडी हवा चल रही थी और हरे-भरे पेड़ दिख रहे थे। और बाकी सब को बहुत मजा आ रहा था लेकिन हमें वहां पर ठहरने के लिए कोई भी होटल का कोई भी कमरा खाली नहीं मिला तो हम परेशान हो गए कि अब हम क्या करें, फिर हेमा मासी ने, एक होटल के मैनेजर से बात की तो उन्होंने कहा कि 2 दिन बाद एक कमरा खाली हो रहा है तब तक आप लोग कहीं और व्यवस्था कर लीजिए , जब उस मैनेजर के मुंह से हमने यह बात सुनी तब हम मायुस हो गए थे।

क्या-क्या सोच कर आए थे और क्या हो गया, लग रहा था जैसे हमें छुट्टियां मनाने आनी ही नहीं चाहिए थी।और तब हेमा मासी से हमारा मायूस चेहरा देखा नहीं जा रहा था, तो उन्होंने कहा कि मायूस होने की कोई ज़रूरत नहीं है इन 2 दिनों में तुम लोगों को इतना मजा कर आऊंगी की तुम लोगों को कोई तकलीफ महसूस ही नहीं होगी। तब हेमा मासी ने गाड़ी के ड्राइवर को वापस चले जाने के लिए कहा, और हेमा मासी ने ख़ुद गाड़ी चला कर हमें वहां के बाज़ार में लेकर गई, और कुछ सामान खरीदें जो कि मुझे और मेरे बाकी दोस्तों को पता नहीं था कि वह क्या खरीद रही है। और बाजार जाते वक्त उन्होंने हमें कुछ खिलौने ज़रूर खरीद दिए थे। रात को जब हम बाज़ार से वापस लौट रहे थे वह हमें जंगल के अंदर लेकर गई( हालांकि वह जगह खतरों सेबाहर था) और एक जगह में रुक गई, और हमें गाड़ी में ही बैठने को कहा ,कुछ देर बाद उन्होंने हमको बुलाया और कहां कि आज रात हम तंबू में ही रात गुजारेंगे। तब हम हैरान हो गए क्योंकि हमने आज तक तंबू के बारे में सिर्फ़ टीवी में ही देखा था कभी सामने से नहीं देखा था और ना ही कभी वहां पर रहने के बारे में सोचा था लेकिन हमें बहुत ही उत्सुकता हो रही थी यह जानने के लिए कि तंबू लगाते कैसे हैं और उसमें रहते कैसे हैं। तब हेमा मासी नेहम सबको तंबू लगाना सिखाया और हमने एक साथ एक तंबू बना लिया। और जब वह तंबू खड़ा हुआ वह देख कर मुझे और मेरे बाकी दोस्तों को इतनी खुशी हुई कि मैं बता नहीं सकती।लेकिन हमें थोड़ी रोशनी की भी जरूरत थी, इसीलिए मासी नेकहा कि आज रात कैंप फायर करके गुजारेंगे तब मैं और मेरे दोस्तों के चेहरे और ज़्यादा खिल गए क्योंकि हमने इससे पहले कैंप फायर के बारे में भी सिर्फ़ टीवी में ही देखा था उसे कभी महसूस नहीं किया था लेकिन हेमा मासी की वजह सेवह संभव हो रहा है। तो हम सब ने मिलकर आसपास की जगह से लकड़ियां इकट्ठा की और दो पत्थर भी इकट्ठा किए जिन्हें आपस में घिसकर हम आग जलाने की कोशिश कर रहे थे मुझसे तो हो ही नहीं रहा था और आखिर में दीया ने आग जला ही दी तब हमको जो खुशी हुई उसे देखकर लगा कि जैसे हमने बहुत बड़ा पुरस्कार मिल रहा है।और हेमा मासी हमारे लिए वहां के खास मोमोज़ लेकर आई थी जो कि हमने इससे पहले कभी नहीं खाया था। पर हमें खा कर अच्छा लगा। कुछ नया सब को बहुत अच्छा लगता है और हमें भी बहुत ही मजा आ रहा था हमने सारी रात नाचते ,गाते,खेलते और बातें करके गुज़ारे और कब सुबह हो गई पता भी नहीं चला।और हेमा मासी ने सुबह होते ही, हम सब को गाड़ी में बिठा दिया और लेकर चली एक नदी की तरफ क्योंकि बहुत ही खूबसूरत था और नदी का पानी एकदम ठंडा था इतना ठंडा की पैर जम जा रहे थे। वहां पर एक खूबसूरत झरना भी था तभी मामा जी ने गाड़ी से मछली पकड़ने के डंडे निकाले जो कि उन्होंने बाजार से खरीद लिए थे। और उन्होंने हमको मछली पकड़ना भी सिखाया था, तब भी हम बहुत मजे़ कर रहे थे लेकिन इस बार किसी से मछली नहीं पकड़ी जा रही थी लेकिन मैंने एक पकड़ ली थी जो कि छोटी सी थी और बहुत प्यारी भी तब हमने उस मछली के साथ एक फोटो ली और फिर उसे वापस जाने दिया और जैसे ही शाम हुई हमने वहां पर तंबू लगा दिया और लकड़ी इकट्ठा करके पत्थर खेत के आग जला दिया।

तब रात को खाने के लिए हमारे पास कुछ खास नहीं था, तो हेमा मासी ने अपनी गाड़ी से चावल और दाल निकाला और उन्हें एक साथ उबालकर खिचड़ी बना ली, हमें बहुत भुख भी लगी थी इसलिए हमने उसे मजे़ से खा भी लिया। और रात को हम तंबू में घुस गए और सो गए क्योंकि हमने पिछले दिन कोई आराम नहीं किया था। पर हेमा मासी जगी हुई थी हम पर नज़र रख रही थी। फिर अगले दिन सुबह हो गई तो इस बार हम पहाड़ चढ़ने के लिए गए। दीया और दीपक तो चलना ही नहीं जाते थे क्योंकि उन्हें बहुत ही डर लग रहा था लेकिन हेमा मासी के समझाने पर वह भी चलने के लिए तैयार हो गए और जब हम एक मंजिल पर पहुंचे तो हमें लगा कि हमने जैसे दनिुया जीत ली कितना सुंदर नज़ारा था चारों और हरियाली थी देखकर लग रहा था कि वापस ही ना जाऊं पर जैसे ही समझ आया कि सूरज ढल रहा है तो हम वापस नीचे आ गऐ और तंबू लगाया ,आग जलायी और सो गए इस बार मैंने हेमा मासी से कहा कि "आप सो जाइए मैं जगी रहती हूं" क्योंकि उन्होंने एक सेकेंड के लिए भी आराम नहीं किया था पर हेमा मासी सोई नहीं थी पर मैं ही बैठे-बैठे हो गई थी तभी हेमा मासी ने सवेरे उठकर मुझे सुला दिया और खदु बैठे रही। जैसे ही सुबह हुई तब हमें याद आया कि होटल का कमरा खाली हो गया है ,तो हमें वापस जाना चाहिए। लेकिन सच कहूं तो मुझ होटल में रुकने का कोई इच्छा नहीं थी, क्योंकि अगर हम होटल में रहते तो यह दुनिया या कितनी सुंदर है हमें पता ही नहीं चलता मैं तो भगवान का शुक्रिुया अदा करूंगी कि उन्होंने हमें यह 2 दिन दिए इस जगह को अच्छे से समझने के लिए की असली प्रकृति क्या होती है पर रुकना तो था ही इसीलिए हमने 3 दिन और होटल में गुजारे, पर जो भी होता है।अच्छे के लिए होता है जैसे ही 3 दिन निकल गए हमेंयह एहसास हो कि हमें वापस घर भी जाना है , मुझे और मेरे दोस्तों को बिल्कुल इच्छा नहीं थी कि हम इस जगह से वापस जाए लेकिन क्या करें वापस तो जाना पड़ेगा ही इसलिए ही हेमा मासी ने हम सब को अच्छे से समझाया और गाड़ी में बिठा कर वापस ले गए। और जैसे ही हम गाड़ी में बैठे तब हम सब ने पीछे मुड़कर उस जगह को अलविदा कहा लेकिन वादा करके आए कि हम फिर से ज़रूर आएंगे।


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