हाथी - 4

हाथी - 4

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दो घण्टे बाद वह सर्कस में बैठे थे, पहली पंक्ति में, और देख रहे थे कि कैसे मालिक के आदेश पर प्रशिक्षित जानवर अलग-अलग तरह के करतब दिखाते हैं। होशियार कुत्ते छलांग लगाते हैं, कलाबाज़ी खाते हैं, डान्स करते हैं, म्यूज़िक के साथ गाते हैं, पुट्ठे के बड़े-बड़े अक्षरों से शब्द बनाते हैं। छोटे-छोटे बन्दर – एक लाल स्कर्ट में, बाकी के नीली पतलूनों में – रस्सी पर चलते हैं और बड़े पूडल पर सवारी करते हैं। विशाल लाल सिंह जलती हुई हूप्स से छलांग लगाते हैं। भद्दी सील मछली पिस्तौल चलाती है। अंत में हाथियों को बाहर लाया जाता है। वे तीन हैं : एक बड़ा है, और दो बिल्कुल छोटे, जैसे बौने हों, मगर फिर भी डील-डौल में घोड़े से काफ़ी बड़े थे। देखने में अजीब लग रहा था कि ये भारी-भरकम प्राणी, जो देखने में ज़रा भी फुर्तीले नहीं लग रहे थे, सबसे कठिन करतब दिखा रहे थे, जो कि किसी फुर्तीले इन्सान के लिए भी मुश्किल है। सबसे ख़ास था बड़ा वाला हाथी। पहले वह पिछले पंजों पर खड़ा होता, बैठ जाता, सिर के बल खड़ा होता, पैर ऊपर।।।लकड़ी की बोतलों पर चलता, लुढ़कते हुए ड्रम पर चलता, अपनी सूण्ड से बड़ी, तस्वीरों वाली किताब के पन्ने पलटता, और अंत में मेज़ पर बैठ जाता और, टेबल-नैपकिन बांधकर, खाना खाता, जैसे कि एक अच्छा बच्चा खाता है।

शो ख़त्म हुआ। दर्शक चले गए। नाद्या के पिता मोटे जर्मन, सर्कस के मालिक, के पास आए। मालिक लकड़ी की फेन्सिंग के पीछे खडा है और मुँह में काला मोटा सिगार दबाए है।

 “माफ़ कीजिए,” नाद्या के पिता ने कहा, “क्या आप अपने हाथी को कुछ देर के लिए मेरे घर ले जाने देंगे ?”

जर्मन की आँखें अचरज से फैल गईं, और मुँह भी, जिसके कारण सिगार भी ज़मीन पर गिर पड़ा। वह, कराहते हुए, झुकता है, सिगार उठाता है, उसे फिर से मुँह में रखता है और तभी कहता है:

 “ले जाने दूँ ? आपके घर ? हाथी को ? मैं आपकी बात समझा नहीं।”

जर्मन की आँखों से यह भी लग रहा था, कि वो ये पूछना चाह रहा है कि कहीं नाद्या के पिता का सिर तो नहीं दर्द कर रहा है मगर पिता ने उसे फ़ौरन समझाया कि बात क्या है : उनकी इकलौती बेटी, नाद्या, किसी अजीब बीमारी से जूझ रही है, जिसे डॉक्टर्स भी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। वह एक महीने से बिस्तर पर पड़ी है, दुबली होती जा रही है, दिन पर दिन कमज़ोर होती जा रही है, उसे किसी चीज़ में दिलचस्पी नहीं है, वह ‘बोर’ हो रही है और धीरे-धीरे बुझती जा रही है। डॉक्टर्स कहते हैं कि उसका दिल बहलाएँ, मगर उसे कुछ अच्छा ही नहीं लगता; डॉक्टर्स उसकी हर इच्छा पूरी करने को कहते हैं, मगर उसके दिल में कोई इच्छा ही नहीं है। आज उसने ज़िन्दा हाथी को देखने की ख़्वाहिश ज़ाहिर की है। क्या ये असम्भव है ?”

और वह थरथराती आवाज़ में, जर्मन के कोट की बटन पकड़कर, आगे कहता है:

 “तो, ऐसी बात है।।।मैं, बेशक, उम्मीद करता हूँ, कि मेरी बेटी ठीक हो जाएगी। मगर ख़ुदा ना करे अगर उसकी बीमारी ख़तरनाक साबित हुई।।।अचानक बेटी मर जाये तो ? ज़रा सोचिए: मुझे ज़िन्दगी भर बस ये ही ख़याल सताता रहेगा कि मैं उसकी आख़िरी ख़्वाहिश पूरी न कर सका !”

जर्मन ने भौंहे चढ़ा लीं और ख़यालों में डूबे-डूबे छोटी ऊँगली से दाईं भौंह खुजाई। आख़िरकार उसने पूछा:

 “हुम कितने साल की है आपकी बेटी ?”

 “छह।”

 “हुम मेरी लीज़ा भी छह साल की है। हुम् मगर, जानते हैं ये आपके लिए बहुत महंगा पड़ेगा। हाथी को रात में ले जाना पड़ेगा और बस, दूसरे ही दिन वापस लाना पड़ेगा। दिन में तो नहीं ले जा सकते। पब्लिक जो आती है, और फिर एक ही हंगामा खड़ा हो जाएगा।।।इसका नतीजा ये होगा कि मेरा एक दिन बर्बाद हो जाएगा, और आपको मेरा नुक्सान चुकाना पड़ेगा।”

 “ओह, बेशक, बेशक।।।इसकी फ़िक्र मत कीजिए।”

 “फिर : क्या पुलिस एक घर में एक हाथी को ले जाने की इजाज़त देगी ?”

 “वो मैं संभाल लूँगा। इजाज़त मिल जाएगी।”

 “एक सवाल और : क्या आपका मकान-मालिक अपने घर में एक हाथी को घुसने देगा ?”

”बिल्कुल देगा। मैं ख़ुद ही उस घर का मालिक हूँ।”

 “अहा ! ये तो बढ़िया बात हुई। और फिर, एक सवाल और : आप कौन सी मंज़िल पर रहते हैं ?”

 “दूसरी।”

 “हुम्। ये ज़्यादा बढ़िया बात नहीं हुई।।।क्या आपके घर में चौड़ी-चौड़ी सीढ़ियाँ हैं, ऊँची छत है, बड़ा कमरा है, चौड़े दरवाज़े हैं और खूब मज़बूत फ़र्श है ? क्योंकि मेरा टॉमी तीन हाथ और चार ऊँगल ऊँचा है, और उसकी लम्बाई है – चार हाथ। इसके अलावा, उसका वज़न बारह मन है।

नाद्या के पिता ने एक मिनट को सोचा।

 “ऐसा करते हैं,” उन्होंने कहा। “अभी हम मिलकर मेरे घर चलते हैं और हर चीज़ देख लेते हैं। अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं पैसेज चौड़ा करवा लूँगा।

“बहुत अच्छी बात है !” सर्कस का मालिक तैयार हो जाता है।


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