ग़ज़ल

ग़ज़ल

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मिला है आज फिर आँखों को रतजगा यारों।
कोई तो ख्वाब में आकर चला गया यारों।

किसे कहेंगे हम अपना किसे पराया अब।
हमारा कोई नहीं है हमआशना, यारों।

ज़रूर कोई फरिश्ता यहां पे आया था।
चराग़ जलता मेरे दर पे रख गया यारों।

मुझे सफ़र में अकेले ही अब तो चलना है।
मिली है इश्क़ में ऐसी मुझे सज़ा यारों।

फ़ज़ा में पहले सी खुशबू नहीं बिखरती है।
ग़ुलाब जैसा कोई जबसे चुप हुआ यारों।

मैं एक आस लगाए हुए हूँ कबसे ये।
कोई तो प्यार से मुझको पुकारता यारों।

कमाल इश्क़ का रस्ता बहुत ही संकरा है।
कोई न साथ कभी इसपे चल सका यारों।

 


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