दोस्ती
दोस्ती
एक नौकरीपेशा स्त्री के लिए तबादला एक सजा है,,पचास वर्षीय वृंदा को जमी जमाई गृहस्थी छोड़ना पड़ा,,कितना मुश्किल होता है,,,आज पूरे एक महीने के बाद अपने घर जा रहीं थी,,,मन मे विचारों का प्रवाह बस की द्रुत गति सा अविरल चलता जा रहा था ,,,घर से 400 किमी दूर अकेले रहना इस उम्र में... बहुत पीड़ादायक था अपना आरामगाह छोड़ना,,,लेकिन सुख सुविधा के विस्तार में लिए गए ऋणों की किस्तें चुकाने के लिये खुद ही तो इर्द गिर्द मकड़जाल बुन लेते हैं हम,,,
कैसे होंगे घर पर सब,,,कैस्पर मुझे देखकर झूमेगा,,,पूँछ हिला हिलाकर मेरे पैरों से लिपट जाएगा,,,विक्की मुझसे लाड़ जतायेगा,,,ढेर सारे पकवानों की फरमाइश करेगा,,,श्रीमान जी तो अपने किये कामों की प्रशंसा करते नही थकेंगे,,,अचानक ड्राइवर की चररर र्र ने वृंदा केध्यान पर ब्रेक लगाया।
उदयपुर से कब भीलवाड़ा आ गया ,पता ही ना चला,,,वातानुकूलित बस लगभग पूरी खाली सी थी।
कंधे पर लैपटॉप टांगे लगभग 27 वर्षीय गौर वर्ण का सुदर्शन युवक बस में दाखिल हुआ,होठों को गोल गोल करते हुए सीटों की पड़ताल करते हुए कौतूहल से वृंदा पर नज़र डाल इशारे से वृंदा के पास वाली सीट में बैठने की अनुमति मांगी। विक्की की कदकाठी और उम्र का बच्चा,,,वृंदा ने सहर्ष अनुमति दे दी।
वृंदा अपने फोन पर व्यस्त थी,,,फोन समाप्त होने पर युवक बातचीत आरंभ करता है"आपका नाम से लेकर ट्रांसफर,,घुमक्कड़ी,,,साहित्य,,,,दर्शन पर खूब चर्चा हुई" बातचीत के दौरान कई बार शेखर का हाथ वृंदा की देह से लगता ,,,वह असहज हो जाती फिर अपने को संभालती
मन ही मन सोचती बेटे जैसा है,,, मेरे मन मे ही क्यूँ गलत बातें जन्म ले रही हैं।शेखर ने अपनी सीट पीछे कर ली थी,,,,"आप भी अपनी सीट पीछे कर लो,आराम मिल जाएगा"
"नही ,,नहीं,,,ऐसे ही ठीक हूँ"
"लाइये मैं करे देता हूँ आपकी सीट पीछे"संभवतः समझ गया था वृंदा को आ नही रहा है पीछे करना।
अपना हाथ लम्बा करके वृंदा के पेट के ऊपर दबाव बनाते हुए शेखर ने सीट को पीछे कर दिया।
बहुत अटपटा सा लगा वृंदा को,,,,लेकिन संभाला,,,,खुद को,,,एक बार फिर झटक दिया विचारों को,,अब आंखें बंद कर ली थी वृंदा ने,,,नींद के उपक्रम में उन्हें कई बार शेखर की सांसें समीप ही दहकती प्रतीत हुए,,,उसकी बातें,,, उसके सुलगते जज्बातों की आंच में,,, झुलसने लगी थी,,वृंदा,, यूँ तो उन्होंने सैकड़ों यात्राएं करी है।जहां एक ओर उनका आदर्शवादी मन उस छिरोरे में अपना स्नेह ढूंढ रहा था वहीं दूसरी ओर यथार्थता के क्षणों में उस युवक ने अपनी पहचान बताई,,,वृंदा के एकदम समीप आकर कान के पास फुसफुसाया "मुझे मैच्योर लेडी बहुत पसंद हैं,,,आप दोस्ती करोगी?" एक बार चौंकी थी वृंदा,,,फिर झटके से सीधी हुई,,,और बोली " हां! बेटा,,, मुझे भी तुम बच्चों से बाते करना दोस्ती करना और गलती करने पर तुम जैसों के कान खींचना अच्छा लगता है।उसकी ओर सख्ती से घूरती हुई आगे बोली "बच्चों को अपनी सीमाएं पता होना चाहिए।"
अगले 5 मिनिट में शेखर पीछे की सीटों में काबिज था।