kalpana sahoo

Children Stories

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kalpana sahoo

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दो पहिया

दो पहिया

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क्लास सात से मेरी सब दोस्तों के पास अपनी अपनी साईकेल थी बाकी मुझे छोड् कर । मुझे भी मन करता था साईकेल चलाने को । पर मुझे नहीं आती थी चलाना और वैसे भी हमारे पास तब उतने पैसे भी नहीं थे की एक नयी साईकेल खरीद सकुँ । में हरबक्त माँ से बोलती रेहती थी माँ पापा को बोलोना, मुझे भी एक साईकेल ला देगें । माँ बोलती थी तु पेहले चलाना तो सीखले, फिर तेरी पापा को बोलती हुं । जब पैसे हातमें होगें में उन्हे बोल दुगीं वो तेरे लिये नयी साईकेल ले आयेगें । 


 माँ की बातों में कीतनी सचाई थी वो तो मुझे पता नहीं थी पर एक आश् जगा दी थी माँने । की अगर में ये करलूं तो वो मुझे मिल जायेगी । में भी बहत जीद्दी थी । फिर मैंने ठानली की भाई कुछ भी हो जाये में साईकेल सीख के रहूँगीं । मुझे सिखायेगा कौन ? हमारे घरमें तब एक ही साईकेल थी । वो भी पापा के था । मेरी पापा की हाइट ५ फिट् ७ ईचं है । घरमें काफी लम्बे थे पापा । इसलिए उन्होंने २४ ईचं की साईकेल चला रहे थे । मुझे जैसे भी हो साईकेल चलानी थी । भैया को बोली भैया प्लीज मुझे साईकेल सिखा दो ना । मेरी सब दोस्तों साईकेल चला रहे हैं पर आजतक मुझे साईकेल चढना भी नहीं आता है ।  

   

मेरी भैया के साथ मेरा कभी नहीं पटती है । हम दोनो हमेशा लढते झगडते रहते हैं । मगर वो मुझे बहत प्यार भी करते हैं । सिर्फ वो नहीं, में घरमें सबसे छोटी हूँ इसलिए सब मुझे प्यार करते हैं । पर चिडाते हैैं भी ज्यादा । मेरी भैया को जब भी में कुछ करने केलिए बोलुँ तो वो पेहले थोडा भाऊ खायेगें फिर वो काम करेगें । ये उनका बचपन का रोग है । उस दिन भी में जब भैया को मुझे साईकेल सिखाने केलिए बोली तो वो थोडा भाऊ खाये । कुछ दिन मसका लगाना पडा भैया को फिर जाके राजी हुये । फिर क्या हुआ ? अगले दिन वो मुझे साईकेल सिखाने केलिए पापा के साईकेल लेके एक खाली जगह पर गये । उस जगह हमारे घरसे बहत दूर । स्कुल् से छुटी होने के बाद रोज् हम दोनों उस जगह जाते थे । करीब देढ् दो घन्टें प्रक्टिस करने के बाद घर चले आते थे ।  

एक पैर में चलाना सीखगयी थी पर दो पैर लगा के साईकेल नहीं चढ पाती थी । मगर जब भी में पापा को बोलती थी पापा मुझे साईकेल दिला दो । पापा गुस्से से बोलते थे तुझे कुछ नहीं मिलेगा । में भी जिद लगाकर बैठ जाती थी । फिर पापा भी राजी हो गेये । बोले हाँ अगर तु ७बी में अच्छी नम्बर लायेगी तुझे साईकेल दिलवाऊंगाां । मैं खुश हो गेयी । साईकेल पूरा सीखना था मुझे, बरना में कैसे चलाऊगीं ?


रोज् रोज् सिखाने के बाबजूद भी मैं मेरी डर के बजह से सीख् नहीं पाती थी । भैयाने मुझे सिखाने की बहत बार कोशिश की मगर नहीं होती थी मुझसे । एकदिन तो भैया भी तगं आकर बोले तुझसे नहीं होगा । तु पैदल ही ठीक् है । उस दिन मुझे बहत बुरा लगा था । फिर मैं खुद सिखानेकी कोशिश की । सीखने के चक्कर में एक दिन मुझे बुखार भी हो गया । पापा बोले तेरा साईकेल सिखना बहत हो गेया अब बस् कर । फिर चार-पाचं दिन में मेरा बुखार उतर गया । उसके बाद में किसीको बिना बताये साईकेल ले के चलीगयी । सच मानिये उस दिन में पुरा साईकेल चलाना सीखगयी, दो पैर लगाके । वो मेरी आखीर कोशिश थी । उसके बाद में कभी नहीं सिखी साईकेल, नाही चलायी । 


७बी की परीक्षा हुई । उसके बाद छुट्टी मिली । तब एक दिन दोस्तों के साथ मिलकर घूमने गये थे । तभी मैंने एक सहेली को बोली, पता है में भी साईकेल चलाना सीख गयी हुं और मेरी पापा भी मुझे बोले हैं की अगर में परीक्षा में अच्छी नम्बर लाऊगीं तो पापा मुझे नयी साईकेल दिलबादेगें । दोस्तों ने मेरा मजाक् उडाया । बोले तु झूठ बोलती है । कब तु साईकेल सीखी हम नहीं जानते है क्या ? चल् जा तु इतना फेकं मत । मुझे गुस्सा आ गया। में झटसे एक दोस्त की साईकेल ली और बोली देखो अगर में चलालुगीं तो तुम्हारे तरफ़ से आज मेरा घूमना है । सब राजी हुये । सच में मुझे भी पता नहीं थी की में चला पाऊगींं या नहीं । फिर भी हीम्मत करके चढी ।


तब मैंने बडी साईकेलमें दो पैर लगाके चलाना सिखी थी और दोस्त की साईकेल छोटी थी । तो मैंने सोची इसमें सीट्में बैठ के चलालुगीं और वही भी किकीया । पर साईकेल से उतर नहीं पायी । दोस्तों को बोली पकडो मुझे बरना में गीर् जाऊगीं । मुझे चढना, चलाना आगेया पर उतरना मालुम नहीं थी । क्या है ना में पेहले वैसे साईकेल नहीं चलायी थी और नाही मुझे सीट् में बैठकर चलाना आती थी । में तो सीफ् दिखाबा से ऊपर चढगयी । खेर जो भी हो दोस्तोंने मुझे पकडे और में साईकेल से निचे उतरी । सब चोकगये ! पुछे ये क्या हुआ ? क्यैसे हुआ ? तु कब सिखा ? में हवा में तीर चलाने में माहीर थी, यैसे ही दो चार गप्पे ओर मारदी । फिर उनकी तरफ से मेरी घुमना फ्री में होगेयी ।


रज् के पेहले हमारी रिजल्ट आ गया । मैं अच्छे नम्बर से पास हुई थी । घर में सब खुखुशस थे । छुटीयां खतम भी हुई । स्कुल् खुला । प्राईमेरी से नाम और सार्टिफिकेट लेकर हाईस्कुल् में दाखिला करबाया । पापा भी अपना वादा पुरा किये । मेरी लिये नयी साईकेल लाये । फिर में रोज् उसी साईकेल से दोस्तों के साथ मिलकर हाईस्कुल् गयी । बाद में पता चली की वो साईकेल मुझे मेरे नाना दिये थे । माँ को पूछी तो माँ ने बतायी हाँ तु जिद कर रही थी इसलिए तेरी पापा नयी साईकेल लानेबाले थे मगर पैसे खर्च हो गेया तो तुझे दिया हुआ वादा पुरा नहीं करपाये । इसलिए तेरी नानाजी ये साईकेल तेरे लिये भेजे । माँ की बाते सुनकर आसू आ गेये । आज भी वो दिन याद है मुझे ।



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