भ्रूण हत्या
भ्रूण हत्या
क्या गलती उस नादान सी जान की, जो इस दुनिया में कदम ही नहीं रख पाई। कैसे वह मां के गर्भ में अंतिम सांसे भर रही होगी, कैसे वह तड़प-तड़प के मर रही होगी। कैसे कर जाते हैं लोग ये भ्रूण हत्या कर इतना बड़ा पाप, कौन बंद करेगा ये भ्रूण हत्या जैसा अभिशाप ?
आज भी क्यों है बेटी-बेटा में भेदभाव क्यों नहीं निकलते हैं लोग इस बुरे बर्ताव से ? क्यों बांध के रखे बेटियों के पांवों घर के द्वार से। देश विकसित हो रहा है, सिर्फ विकसित राज्यों में। बाकी कुछ गांवों में पीछे आज वी छूटा है। यहां लोगों की इतनी छोटी सोच है बेटी के लिए वो सुविधा नहीं जिसकी वो हकदार है। बेटी को सिर्फ 18 साल तक रखते है यहां फिर उसे भेज दिया जाता है दूसरे संसार में जिसका कुछ पता नहीं कि कैसा व्यवहार उसे सहन करना पड़ेगा। लोग लड़कियों को पैदा करने से डरते हैं और भ्रूण हत्या करवा देते हैं। आज की पीढ़ी वक्त के साथ थोड़ी बदली है पर सिर्फ और सिर्फ शहरी परिवेश में ग्रामीण वातावरण तो आज भी मासूमों की जान के पीछे पड़ा है, मैं वर्णित कर रही एक मासूम की इस दुनिया से आने से पहले ही इस दुनिया से जाने की कहानी कि कैसे हालातों के सामने इंसान भ्रूण हत्या को अंजाम दे देता है। कहानी कुछ इस तरह प्रस्तुत है ––––
मीरा एक कम पढ़ी-लिखी पिछड़े गांव में निवास करती सोलह साल की लड़की थी। उसकी मां शांति उसे बचपन में ही छोड़ भगवान के घर जा चुकी थी। उसके पिता हैजा बीमारी से ग्रस्त थे। उसके घर का वातावरण बहुत ही सहज था। एक कोने में चूल्हा बना था वही पास में अरगनी पर पुराने से कपड़े डले थे। छोटा सा कमरा था उसमें एक तरफ लकड़ी की कुर्सी डली थी और थोड़ी दूर पुराना लोहे का सूटकेस रखा था। बाहर की तरफ मिट्टी की झोपड़ी थी जिसमें उसके घर की दो बकरी बंधी थीं। जिन्हें मीरा दीनू, मीनू बुलाती थी। बकरियों के दूध से उसे घर की कई समस्याओं से निपटना सुविधापूर्ण हो जाता था। और वह कुछ दूध बेच के राशन का सामान ले आती थी। मीरा के पिता काम नहीं कर पाते थे पर उन्हें मीरा को ब्याहने की बहुत चिंता रहती थी वह बैठे बैठे सोचते थे कि ना जाने क्या होगा इस बिन मां की लड़की से कौन ब्याह करेगा। इतनी मेरी हैसियत ही कहा़ है कि बिटिया के हाथ पीले कर दूं। पर मीरा उन्हें ये सब सोचने से नहीं रोकती थी वो जानती थी मैं कुछ भी कह लूँ बाबा की चिंता कम नहीं होंगी। बरसात का महीना था। रात का समय था मीरा सोने ही जा रही थी कि इतने में बहुत तेज बारिश होने लगी मीरा ने सोचा एक बार बकरियों को देख आऊं तो थोड़ा चैन मिले। ये सोचकर वह बाहर झोपड़ी में चली जाती है। वहां पहुंचकर वह देखती है कि बकरियों को एक आदमी छोड़ने की कोशिश कर रहा है पर वह अपनी इस कोशिश में असफल हुआ। उसने देखा कि अब इन बकरियों को तो नहीं ले जा सकता पर इस सुंदर लड़की को कैसे छोड़ दे। उसका मन सोलह वर्ष की मीरा के सौंदर्य पर फिसल गया। और वह मौका देखकर उसके करीब आने लगा मीरा बहुत डर गई और चिल्लाने की कोशिश करने वाली ही थी कि इतने में उस आदमी ने उसका मुंह दबा लिया और उसके साथ छेड़खानी करने लगा। मीरा ने उससे छूटने की बहुत कोशिश की पर उस आदमी के सामने टिक न पाई। दीनू, मीनू यह देखकर चिल्लाने लगी पर कोई नहीं आया और मीरा उस दानव के कारण खुद की इज्जत गवा चुकी थी। वह आदमी मीरा के साथ दुष्कर्म करके भाग गया। मीरा वहीं बेहोश पड़ी रही। सुबह जब उसके पिता की आंख खुली तो देखा की मीरा अपनी जगह पर नहीं है। तो वह धीरे-धीरे चलकर झोपड़ी तक आया। वहां पहुंचने पर उसने देखा कि मीरा बेहोश पड़ी है। उसके कपड़े इधर उधर फैले हैं। कुछ वस्त्र उसके शरीर पर भी हैं। मीरा के शरीर पर चोट के कुछ निशान भी थे। वह यह देखकर घबरा गया और रोते हुए मीरा के ऊपर पानी खिंचने लगा। पर मीरा तब भी नहीं उठी। वह मीरा को अपनी बीमारी के चलते उठाने में असमर्थ था। उसने अब मीरा को उठाने की जगह पास के चिकित्सालय में जाकर किसी की मदद लेने का सोचा। वह चिकित्सालय में पहुंचा। वहां उसने एक नर्स बहन को साथ चलने को कहा पर यह संभव नहीं हो पाया। वह हताश होकर वही गिर पड़ा। उसे देखकर वहां के सारे लोग इकट्ठे हो गए। वहीं इत्तेफाक से उसके हैजा बीमारी के डॉक्टर भीड़ देख सामने आ गए। और वह समझ गए कि ये तो रामसिंह है जिसे कुछ महीनों पहले हैजा का इलाज कराने आया था। और यह सोच उसने रामसिंह को उठाया और उसके इस तरह उदास होने की वजह पूछी। रामसिंह ने मीरा कि उस दशा का वर्णन कर डाला। डॉक्टर ने पूरी बात सुनकर उसकी मदद करने का सोचा। और उसने तत्काल अपनी असिस्टेंट नर्स को उसके साथ जाने को कह दिया। नर्स ने डॉक्टर की बात मान उसके साथ उसके घर जाने को तैयार हो गई। डॉक्टर ने दोनों के लिये खुद की छोटी गाड़ी भेजी। चूंकि वह डॉक्टर संपन्न परिवार से विकसित शहर का निवासी था। नर्स और रामसिंह दोनों उसके घर पहुंचे। और देखा तो मीरा अपनी जगह पर नहीं थी। वह यह देख माथे पर हाथ रख रोने लगा। वह नर्स उसे समझाने लगी कि आप अपनी लड़की को ढूंढने की जगह ऐसे बैठे हुए हो। तब वह उठा और जाकर मीरा को ढूंढने लगा। नर्स वही कुछ समय इंतजार करने लगी। रामसिंह मीरा को ढूंढते रहे तब सामने कुआं पर मीरा को देखा। मीरा उस कुएं में गिर कर जान देने की कोशिश कर रही थी। तभी वह जोर से चिल्लाया मीरा........!
मीरा सुनकर भी रुकी नहीं और वह जल्दी से कुएं में छलांग लगाने लगी इतने में उसके पिता ने उसके पास आकर हाथ पकड़ लिया। मीरा बाबा के गले लगकर जोर से रोने लगी। दोनों उदास चेहरे के साथ घर लौट आये। और देखा तो नर्स अब भी वही खड़ी थी। मीरा की चोट बिल्कुल सही नहीं थीं। तब नर्स के पास आकर रामसिंह ने नर्स को मीरा की जांच के लिए कहा। नर्स ने मीरा को बिठाया और उसकी चोटों पर मलहम लगाई और अपने साथ लाई हुई सूटकेश से समान बाहर निकाला। मीरा को वह नर्स अंदर ले गई और फिर उसकी जांच की। हाल फिलहाल मीरा ठीक थी। वह नर्स अब अपने चिकित्सालय जा चुकी थी।
मीरा अपनी इस बुरी हालत पर रोती थी। रामसिंह तो जैसे सदमा- सा खा गए थे। वह सोचते थे कि बेटी का ब्याह अब तो होना संभव नहीं है क्या पता था कि मेरी चिंता का अंत इस तरह होगा। अब कोई मीरा से ब्याह नहीं करेगा वो राक्षस कौन था जो बिन मां की बिटिया की ज़िंदगी की छोटी आस को भी बुझा गया क्या बिगाड़ा था इस नादान ने उस दानव का। और यह कहते वह मन ही मन में उसे कोसते हुए सो गया। मीरा को अचानक पेट में दर्द होने लगा। पर वह इस दर्द को साधारण समझ कर सो गई।
दो महीने बीत गए उस नर्स ने जॉच की रिपोर्ट अभी तक नहीं भेजी थी। कहीं से पता किया की डॉक्टर साहब ने असिस्टेंट बदल ली थी। मीरा को ऐसा दर्द अक्सर होने लगा था। एक दिन वह बाबा से कह बैठी। मीरा की इस बात से रामसिंह घबड़ा गया और तुरंत वह मीरा से अस्पताल जाने की कहने लगा। मीरा और रामसिंह अस्पताल पहुंचे वहां मीरा की सारी जांचें हुई तो पता चला की मीरा गर्भवती है। मीरा और उसके बाबा बहुत दुःखी हुए। रामसिंह ने मीरा से गर्भपात कराने को कहा मीरा इस हालत में मजबूर हो गई। वह बहुत चिंतित और दुःखी हुई। और मन ही मन खुद की किस्मत पर रोने लगी और सोचने लगी कि उस वक्त बाबा ने मुझे मर जाने दिया होता तो कम से कम इस मासूम की जान तो नहीं देनी पड़ती। क्या दोष उस नन्ही जान का क्यों मुझसे इतना बड़ा पाप करवा रहा भगवान। मीरा भले साढ़े सोलह साल की हो गई पर वह बहुत समझदार थी। मीरा अब कुछ नहीं कर पा रही थी और उस हैवान दरिंदे को कोस रही थी जो उसके साथ ये सब कर गया था। मीरा अपने बाबा की बात नहीं टाल पाई और मजबूरन उसे गर्भपात कराना पड़ा। और बहुत दुःखी रहने लगी वह अपनी ज़िंदगी बर्बाद समझने लगी। एक दिन रामसिंह अपनी बीमारी के कारण दम तोड़ बैठे। मीरा का इस संसार में अब कोई नहीं रहा। मीरा भी अब अपने मासूम बच्चे की जान की हत्यारी समझकर गांव की एक खाई में कूद गई। इस तरह यह कहानी सिर्फ कहानी बन के रह गई।
यह कहानी की घटना बताती है की किस तरह एक इंसान न जन्मे इंसान की हत्या का कारण बन जाता है। यह तो एक मजबूरी थी पर इसके अतिरिक्त भी फिजूल कारण भ्रूण हत्या कर जाता है।
कई लोग गैर-कानूनी जांच करवा कर पता कर लेते हैं कि मां के गर्भ में लड़का है या लड़की। अगर लड़की हुई तो उसका वहीं गर्भपात करवा देते हैं। ऐसे में उस मासूम का क्या कसूर यही की वो एक लड़की थी ?
हमारे देश में भ्रूण हत्या के हत्यारे के लिए कड़ी से कड़ी सजा रखनी चाहिए। और ऐसी तकनीक पर रोक लगानी चाहिए जो एक हत्या का कारण बने या इस तकनीक का प्रयोग सरकार सिर्फ उसे दे जिसे सबसे ज्यादा और कानूनी तरीके से जरूरत हो।
