Snehil Thakur

Children Stories Horror

4  

Snehil Thakur

Children Stories Horror

बचपन वाला भूत

बचपन वाला भूत

4 mins
491


कहानी आज से करीब पंद्रह साल पहले की है, जब टुप्पू अपने दोस्तों के साथ हर शाम की तरह खेलने के लिए घर से निकली। उस समय वह कक्षा पांचवीं में गई ही थी कि एक महीने बाद गर्मी की छुट्टी आ गई। और इस बार भी वह अपने गांव ही जाना चाहती थी, जहां उसकी सबसे प्रिय मित्र प्रियंका रहती थी। प्रियंका के साथ ही उठना, बैठना, खाना, सोना, खेलना सब कुछ, एक मात्र ऐसी दोस्त जिसके साथ वह अपने मन का हर डर भी साझा किया करती थी। 

इसी डर से जुड़ा एक किस्सा है जो टुप्पू और प्रियंका ने साथ ही महसूस किया, जिसका केंद्र वही बंगला था जहां हर शाम वे उछल कूद करते थे। वह बंगला पुराना खंडहर सा था, पर बड़ा होने के कारण बच्चों को खेलने और कुछ खेलों के दौरान छिपने के लिए शरण देता, जिसके कारण उनका पसंदीदा बन गया था। शायद उस जगह पर कोई अमीर और पढ़ा-लिखा परिवार रहता था, क्योंकि एक बार टुप्पू ने एक अंग्रेजी किताब 'मदर' जिसे मैक्सिम गुर्की ने लिखा है, उसकी ऐसी प्रतिलिपि घर उठाकर अपने साथ ले आई जिसपर धूल जमा, जोकि स्वाभाविक था और उसके कुछ पन्नें निकले, कुछ फटे हुए थे। उसके बाद टुप्पू ने घर पर डांट तो खाई ही, साथ ही वहां जाने पर भी रोक लगा दी गई। जब टुप्पू नहीं जा सकती थी, फिर प्रियंका का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है। उसके पापा ने भी उसे वहां जाने से मना कर दिया। कुछ दिन तो वे दालान पर खड़े ट्रैक्टर , कभी छत तो कभी आंगन, सभी जगहों पर खेला, पर दो लोगों में क्या आनंद आता भला! तो उन्होंने अपने-अपने‌ पिता को मनाने की ज़िद पकड़ी, और आखिरकार वह दिन आ ही गया जब सभी दोस्त फिर से उसी ‌मस्ती और शरारत भरे मन से शाम का इंतजार करने लगे। 

शाम हुई, और बच्चे अपने नन्हे कदमों से निकल पड़े, कई संजोए सपनों को साकार करने, जिनमें सबसे आगे थे टुप्पू, प्रियंका, मनोहर, सिम्मी और उनकी टोली। पर जिस शाम का उन्होंने बेसब्री से इंतजार किया, वह अनोखी निकली‌, गोधुलि के बाद वापस लौट रहे बच्चों से टकराई बंगले से निकली एक भूतनी।‌ उन्होंने देखा एक औरत जिसके काले बाल बिखरे, पैर उल्टे, हाथ में जादुई छड़ी लिए उन्हें तर्जनी उंगली से कुछ इशारा कर रही है। मनोहर जोर से चिल्लाया और सभी जैसे-तैसे वहां से भाग खड़े हुए। बच्चों का चेहरा देख गांव वाले आश्वस्त हो गए कि यह ज़रूर किसी डायन का कहर है, और वे अपने स्तर पर उससे निपटने की तैयारी करने लगे। एक-एक करके बच्चों ने आपबीती सुनाई, और सभी चुपचाप बैठे सुनते रहे, जिनमें से कुछ डरकर रोने भी लगे। फिर टुप्पू ने भी अपनी धीमी आवाज और गति में सारी जानकारी दे दी। वह इतना डर गई थी कि उसने अगले दिन से वहां जाना ही छोड़ दिया। अगले हफ्ते टुप्पू की स्कूल खुलने वाली थी इसलिए वह शहर चली गई।

आज अचानक गांव से प्रियंका, टुप्पू की बचपन की दोस्त आई है, बारहवीं की परीक्षा देने के लिए। उसने खुले दिल से उसका स्वागत किया, और बचपन की सारी कहानियों को दोहराया और ठहाके लगाते हुए प्रियंका ने कहा- "जानती हो टुप्पू, वो बंगले वाली भूतनी कौन थी? तुम्हें याद है क्या?" टुप्पू ने अचंभित हो उस राज़ से पर्दा उठाने को कहा। तो मालूम यह हुआ कि वह और कोई नहीं, उस बंगले की देखभाल करने वाली बूढ़ी औरत थी। वह कद में छोटी, रंग काला, और विधवा थी इसलिए अक्सर सफेद रंग की साड़ी पहनती थी। आगे मनोहर ने उस औरत की मंशा स्पष्ट करते हुए कहा- "उसने यह नाटक रचा ताकि हम सभी बच्चे उस जगह को छोड़ दें। हम थे जिद्दी व ढ़ीठ, इसलिए सीधे तरीके से बात नहीं मानते, और उनके लिए परेशानी बढ़ जाती, इसलिए सारा जाल रचाकर हमें बेवकूफ बनाया।"

        डर बच्चों की ऐसी मनोभाव है जिसे सही दिशा देने की कोशिश की जानी चाहिए। इतने सालों बाद भी टुप्पू और प्रियंका के अवचेतन मन में घर कर बैठी थी। इसके बारे में सही समय पर बात कर लेना बेहतर होता है। 


Rate this content
Log in